________________
पवन-फाल्गुनी तूफान किसे अच्छे नहीं लगते ? भले ही कुछ उड़ाकर क्यों न ले जाएं। इन हवाओं का स्पर्श अत्यन्त आह्लादक एवं शक्तिसंवर्द्धक होता है।' उदाहरण दृष्टव्य है
"तीव्र नग्नकरणमानलं फाल्गुनं वेगवन्तं, किं न्यक्कुर्यात् परिणतदला काममारामराजिः।"
रोमाञ्च-अलभ्य वस्तु को पाकर व्यक्ति रोमांचित हो जाता है। भगवान् को पाकर चन्दन बाला पुलकित हो गयी है-'स्वस्थां चक्रे पुलकिततर्नु चन्दनां स्मेरनेत्राम् ।
३. रूप बिम्ब-चक्षुरीन्द्रिय द्वारा ग्राह्य विषयों को 'रूप-बिम्ब' के अन्तर्गत रखा जाता है । काव्यों में 'रूप-बिम्ब' की प्रधानता होती है । अश्रुवीणा के कवि ने भी सर्वाधिक इसी बिम्ब का उपयोग किया हैं
बाल-सौन्दर्य-श्रद्धा-वर्णन के प्रारम्भ में ही (काव्यारम्भ में) वैसे बच्चों का सौन्दर्य रूपायित हो रहा है जिनके मुंह और दांतों का दुग्ध भी अभी नहीं सूखा है, जो अत्यन्त भोले हैं-"शिशून् दुग्ध-दिग्धास्यदन्तान् ।१२
निर्ग्रन्थ-महावीर-अश्रुवीणा के अनेक स्थलों पर निग्रंन्थ भगवान् के रमणीय बिम्ब उपलब्ध होते हैं। कहीं तपलीन तो कहीं निगडबद्धा-बाला के उद्धार के निमित्त अभिग्रह धारण करते हुए तो कहीं ग्रहीता के रूप में उनका दर्शन होता है। अडोल व्रती के रूप में उनका चित्र रूपायित हो रहा है । ___महिला-जगत् ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण जगत् के आशास्थान के दर्शन कर कौन प्राणी निहाल नहीं होता ? चन्दन बाला घन्य हो गयी । सामने प्रभु उपस्थित हैं-उन्हीं से वह बाला निवेदित कर रही है
"आशास्थानं त्वमसि भगवन् ! स्त्री जनानामपूर्व, त्वत्तो बुद्ध्वा स्वपदमुचितं स्त्री जगद् भावि धन्यम् । जिह्वां कृष्ट्वाऽसहनरथिकः काममत्तोऽम्बया मे,
दृष्टि नीतोऽऽस्तमित नयनस्तत्र दीपस्त्वमेव ॥१५ इसके अतिरिक्त भी अनेक स्थलों पर प्रभु के बिम्ब उपलब्ध हैं। चन्दनबाला
अश्रुवीणा के पद-पद में एक ऐसी नारी का दर्शन होता है जो संसार के अत्या. चार से ऊबकर अपना सर्वस्व शरण्य महावीर के चरणों में समर्पित कर चुकी है। जिसकी हृदय-तंत्री वीणा के तार के समान झंकृत हो रही है और हृदयस्थ भाव आसूं बनकर भगवान् के चरण चूम रहे हैं।
चिर प्रतीक्षित इच्छा को प्राप्त कर चन्दन वाला धन्य-धन्य हो गयी। आज उसकी वर्षों की साधनापूर्ण हो गयी । प्रभु का दर्शन पाकर अपने पूर्व शारीरिक कष्टों को भूलकर आह्लादित हो गयी है। उसके शरीर से स्वेद-कण टपकने लगे। अचानक अपने उपास्य को पाकर वह व्यथिता किंकर्त्तव्य विमूढ़ हो गयी
तुलसी प्रज्ञा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org