Book Title: Tulsi Prajna 1992 04
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 86
________________ ७८ ६. 'तुलसी प्रज्ञा' के जनवरी-मार्च अंक की सामग्री खोजपूर्ण तथा मौलिक है । इसे पढ़कर मेरा ध्यान पत्रिका की व्यापकता की ओर गया तथा ज्ञात हुआ कि आप द्वारा संपादित पत्रिका का क्षेत्र बहुत व्यापक है । इसमें खगोल शास्त्र, दर्शन, साहित्य, भाषा, व्याकरण, मनोविज्ञान, संस्कृति, इतिहास, पुरातत्त्व आदि विषयों से संबंधित लेख हैं । इस पत्रिका की दूसरी महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसके दो खण्ड - एक हिन्दी दूसरा अंग्रेजी - एक साथ प्रकाशित होते हैं, जो दोनों भाषाओं को जानने वालों के लिए लाभकारी हैं। ऐसा बहुत कम पत्रिकाओं में मिलता है । यदि शोध छात्रों को यह पत्रिका कुछ कम शुल्क में दी जाये तो छात्रों के हित में होगा । - राजवीरसिंह शेखावत १२, प्रतापनगर, शास्त्रीनगर जयपुर-१६ ७. मुनि सुखलालजी के - आचार्य प्रवर श्री भिक्षु का राजस्थानी साहित्य पर - लेख को पढ़कर यह महसूस होता है कि इन सारी बातों पर प्रकाश डालने के लिए एक स्वतंत्र शोध प्रबन्ध की आवश्यकता है । ऐसे शोध प्रबन्ध से आचार्य प्रवर की बहुमुखी प्रतिभा से जनसाधारण व शोध विद्यार्थी बहुत ही लाभान्वित होंगे । - डी० शांतिलाल अरिष्टनेमि चौधरी नं० ३९, बाजार स्ट्रीट, तिरुपति - ५१७५०१ ८. 'तुलसी प्रज्ञा' खण्ड १७ प्राप्त हुआ । आप इस मंच से बहुत अच्छा काम कर रहे हैं । तेरापंथ आचार्य भिक्षु के बारे में जानकारी बहुत उपयोगी लगी राजस्थानी में चिनेक रुचि रखता हूं इसलिए। इनके जीवनवृत्त के बारे में कोई जानकारी भेजें तो बड़ा आभारी रहूंगा । Jain Education International - बी० एल० माली 'अशांत' ३/३४३, मालवीय नगर, जयपुर- ३०२०१७ 9. I read with interest your informative article on the "Saptarși Era". In my translation of the Vayu Purāṇa I did give a detailed note on the Era but a note is no substitute for a detailed article like yours, I hope more people will now know about that important Era. -- Dr. G. V. Tagare Madhavnagar Road, Sangli - 416416 तुलसी प्रज्ञा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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