Book Title: Tulsi Prajna 1992 04
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 85
________________ में वैदुष्प की विशिष्ट आभा लक्षित होती है । सुर वाणी से लेकर मरुवाणी तक के रोचक उदाहरण, ज्ञानवर्द्धक शोध-सामग्री, विदेशी विद्वानों तक के लेख, पुस्तक-समीक्षा आदि विशेषताओं के कारण 'तुलसी प्रज्ञा' प्रज्ञ पाठकों को प्रेरणा प्रदान करती है । डॉ० परमेश्वर सोलंकी एवं मुनि विमलकुमार के लेख तथा युवाचार्य महाप्रज (मुनि नथमल) कृत गंगनहर सम्बन्धी पांच श्लोक विशेष सरस एवं सारगर्भित लगे। ऐसी सुरूचिपूर्ण एवं सम्यक् शोध सामग्री के लिए विद्वान् संपादक को हार्दिक बधाई। -डॉ० शक्तिदान कविया पोलो-II, जोधपुर (राज.) ४. विविध व्यस्तताओं के कारण 'तुलसी प्रज्ञा' का अक्टूबर-दिसम्बर अंक अभी पढ़ पाया हूं। आपके शोधपूर्ण लेखों के प्रकाशन से भारतीयता का गौरव बढ़ेगा ही एवं हमारे अंग्रेजी परस्त मानसिक गुलामों की आंखों को भी नवीन ज्योति मिलेगी। शोधपूर्ण लेखों के कारण विवाद तो होगा ही पर उसी अमृत-मंथन से ही विविध रत्न प्राप्त होंगे और वही आपकी उपलब्धि होगी। 'जैन विश्व भारती' अब माना हुआ विश्वविद्यालय है-विद्वान् कुलपति हैं एवं विविध विद्वान् कार्यरत हैं। कृपया उन्हें भारतीय वाङ्मय के विविध धूमिल पृष्ठों को प्रकाशित करने हेतु आग्रह करें जिससे देश में एक स्वस्थ चिन्तन, समालोचन एवं बहस प्रारम्भ हो सके। नया अंक भी प्राप्त हो गया है। -भण्डारी मदनराज ४४६, महावीर गली, पहली 'सी' रोड सरदारपुरा, जोधपुर-३४२००३ । ५. 'तुलसी प्रज्ञा' (खण्ड १७ अंक ३) के विभिन्न लेखों को पढ़ते समय कुछ सुखद अनुभूतियां हुईं। विषयों की दृष्टि से संस्कृति तथा दर्शन का व्यापक क्षितिज प्रकट होता है। जैनमत से इतर मतों अथवा परिप्रेक्ष्यों के लिये स्थान देकर पत्रिका जैन अनेकान्त का जीवन्त उदाहरण प्रस्तुत करती है। 'लोक अवधारणा' पर संपादक की परिचायात्मक टिप्पणी एक ओर वैमत्य होने पर भी लेख को स्थान देने की उदारता का संकेत देती है तो दूसरी ओर लेख को एक दिशानिर्देश भी देती है । ___ द्विभाषी रखकर पत्रिका का स्कोप और भी बढ़ गया है। भारतीय संस्कृति तथा दर्शन के क्षेत्र में यह पत्रिका पाठकों की जानकारी में वृद्धि करेगी तथा शोधार्थियों के लिये उपयोगी सिद्ध होगी, ऐसा मेरा विचार है। -डॉ० राजेन्द्र स्वरूप भटनागर आर-४, विश्वविद्यालय प्रांगण राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर-४ खण्ड १८, अंक १ (अप्रैल-जून, १२) ७७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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