Book Title: Tulsi Prajna 1992 04
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 35
________________ ४. तत्थ इमाति चोदस गुणढाणाणि ... 'अजोगिकेवली नाम सलेसीपडिवन्नओ, सो य तीहिं जोगेहिं विरहितो जाव कखगघङ इच्चेताइं पंचहस्सक्खराई उच्चरिज्जंति एवतियं कालमजोगिकेवली भवितूण ताहे सव्वकम्मविणिमुक्को सिद्ध भवति । -आवश्यकचूणि (जिनदासगणि), उत्तर भाग, पृ० १३३-१३६, रतलाम, १९२६. ५. एदेसि चेव चोद्दसण्हं जीवसमासाण परूवणदाए तत्थ इमाणि अट्ठ अणियोगद्वा राणि णायव्वाणि भवंति .... 'मिच्छादिट्टिा.... 'सजोगकेवली अजोगकेवली सिद्धा चेदि । -षट्खण्डागम (सत्प्ररूपणा), पृ० १५४-२०१ प्रका० जैन संस्कृति ___ संरक्षक संघ, सोलापुर (पुस्तक) द्वि० सं० सन् १९७३ ६. मिक्छादिट्ठी सासादणो य मिस्सो असंजदो चेव । देसविरदो पमत्तो अपमत्तो तह य णायव्वो ॥१५४॥ एत्तो अपुवकरणो आणियट्टी सुहुमसंपराओ य । उवसंत्खीणमोहो सजोगिकेवलि जिणो अजोगी य ॥१५५।। सुरणारयेसु चत्तारि होति तिरियेसु जाण पंचेव । मणुसगदीएवि तहा चोद्दसगुणणामद्येयाणि ॥१५॥ -मूलाचार (पर्याप्त्यधिकार), पृ० २७३-२७६; माणिकचन्द दिगम्बर ग्रन्थमाला (२३), बम्बई, वि०सं० १९८० ७. अध खवयसेढिमधिगम्म कुणइ साधू अपुवकरणं सो। होइ तमपुव्वकरणं कयाइ अप्पत्तपुवंति ॥२०८७॥ अणिवित्तिकरणणामं णवमं गुणठाणयं च अधिगम्म । णिछाणिछा . पयलापयला तध धीणगिद्धि च ।।२०८८।। -भगवती आराधना, भाग २(सम्पा० कैलाशचंद्र सिद्धान्तशास्त्री) पृ० ८६० (विशेष विवरण हेतु देखें गाथा-२०७२ से २१२६ तक) ८. सवार्थसिद्धि (पूज्यपाद देवनन्दी) सूत्र १/८ की टीका, पृ० ३०-४०, ६-१३ की __टीका, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी १६५५. ६. राजवार्तिक (भट्ट अकलंक) ९/१०/११/पृ० ५८८. १०. तत्त्वार्थ श्लोकवातिकम् (विद्यानन्दी), निर्णयसागर प्रेस सन् १९१८. देखें-गुणस्थानापेक्ष......। १०/३: ...... गुणस्थानभेदेन ...... /३६/४, पृ० ५०३,......"अपूर्वकरणादीनां । ६/३७/२; विशेष विवरण हेतु देखें 8/३४-४४ तक की सम्पूर्ण व्याख्या ।। ११. आवश्यकचूणि (जिनदासगणि), उत्तर भाग, पृ० १३३-१३६ । १२. एतस्य त्रयः स्वामिन श्चतुर्थ-पञ्चम षष्ठ गुणस्थानवर्तिनः....."। तत्त्वार्थाधिगम सूत्र (सिद्धसेन गणिकृत भाष्यानुसारिणिका समलंकृतं-सं० हीरालाल रसिकलाल कापडिया)६/३५ की टीका । खण्ड १८, अंक १ (अप्रैल-जून, १२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


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