Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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आभार
इस विशाल ग्रन्थके सृजन और प्रकाशनका विद्वत्परिषद्ने जो निश्चय एवं संकल्प किया था, उसकी पूर्णता पर आज हमें प्रसन्नता है। इस संकल्पमें विद्वत्परिषद् के प्रत्येक सदस्यका मानसिक या वाचिक या कायिक सहभाग है । कार्यकारिणी के सदस्योंने अनेक बैठकों में सम्मिलित होकर मूल्यवान् विचार दान किया है । ग्रन्थ वाचनमें श्रद्धेय पण्डित कैलाशचन्द्रजी शास्त्री और डॉ० ज्योति प्रसादजीका तथा ग्रन्थको उत्तम बनाने में स्थानीय विद्वान् प्रो० खुशालचन्द्रजी गोरावाला, पण्डित अमृतलालजी शास्त्री एवं पण्डित उदयचन्द्रजी बौद्धदर्शनाचार्यका भी परामर्शादि योगदान मिला है ।
पूज्य मुनिश्री विद्यानन्दजीने 'माथ मिताक्षर' रूपमें आशीर्वचन प्रदान कर सथा वरिष्ठ विद्वान् श्रद्धेय पण्डित कैलाशचन्द्रजी शास्त्रीने 'प्राक्कथन' लिखकर अनुगृहीत किया है ।
खतौली, भोपाल, बम्बई, दिल्ली, मेरठ, जबलपुर, तेंदूखेड़ा, सागर, वाराणसी, आरा आदि स्थानोंके महानुभावोंने ग्रन्थका अग्रिम ग्राहक बनकर सहायता पहुँचायी है । विद्वत्परिषद् के कर्मठ मंत्री आचार्य पण्डित पन्नालालजी सागर के साथ में भी इन सबका हृदयसे आभार मानता हूँ ।
वीर-शासन- जयन्ती,
श्रावण कृष्णा १, वी०मि० सं० २५००, ५ जुलाई, १९७४ वाराणसी
दरबारीलाल कोठिया
अध्यक्ष
अखिल भारतवर्षीय दि० जैन विद्वत्परिषद्
१६ : मोर्थंकर महावीर और उनको आचार्य-परम्परा