Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 6
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri

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Page 6
________________ ( ५ ) उनका स्वर्गवास २६-१२-६७ को हो गया । देवेच्छा के सामने हम विवश रहे । स्वर्ग में उनकी आत्मा को इस पावन कार्य से अवश्य प्रसन्नता होगी। ऋणभार स्वीकार इस खंड के प्रकाशन में श्रीमती जयवंती देवी ने जो सहायता दी है वह अविस्मरणीय है, हम उनके प्रति ऋणी हैं, श्री ब्र० रतनचंदजी मुख्तार व श्री वा० नेमीचंदजी वकील ने ग्रंथ की विषय सूची के संकलन में, श्लोकानुक्रमणिका के चयन में एवं उक्त सहायता के प्रदान कराने में संस्था के प्रति आत्मीयता पूर्ण व्यवहार किया उनके प्रति हम कृतज्ञ हैं, श्री महावीर जी क्षेत्र स्थित शांतिसागर सिद्धांत प्रकाशिनी संस्था, स्व० पं० अजितकुमार जी शास्त्री और आनन्द प्रेस वाराणसी के हम आभारी हैं जिनके सत्प्रयत्न से यह कार्य सुकर हो सका, पांचवें अध्याय के अंत तक श्री महावीर जी में और छठे, सातवें अध्याय का भाग वाराणसी में मुद्रित हुआ । और भी जिन जिन सज्जनों का हमें इस कार्य में सत्परामर्श व सहयोग प्राप्त हुआ उनके भी हम कृतज्ञ हैं । अपनी बात यह ग्रंथमाला परम पूज्य प्रातः स्मरणीय गुरु देव आचार्य कुंथूसागर महाराज की स्मृति में संचालित है । आचार्य महाराज स्वयं विद्वान्, लोकैषणा के धनी, विश्ववंद्य, सर्वजन मनोहर, कठिन तपस्वी एवं प्रभावक साधु थे, उनके द्वारा निर्मित करीब ४० ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं। जो जन साधारण के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध हो चुके हैं । यह श्लोकवर्तिकालंकार विद्वान् समाज के लिए अध्ययन की वस्तु है । इसे सरल व हृदयंगम करने के लिए जैन समाज के वयोवृद्ध सुप्रसिद्ध विद्वान् श्री तार्किक शिरोमणि, सिद्धांत महोदधि, पं० माणिकचंद जी न्यायाचार्य ने जो विस्तृत हिंदी टीका लिखी है, वह अनुपम है । विद्वत्समाज उनकी इस कृतिकी उपकृति के लिए सदा ऋणी रहेगा। पूज्य पंडित जी की भी उत्कंठा है कि इसका संपूर्ण प्रकाशन जीवन काल में ही पूर्ण हो जाय । इसके प्रकाशन में ग्रंथमाला के ट्रस्टियों का सहयोग पूर्णतया रहा है । वे हमारे कार्य में सतत प्रोत्साहन देते रहते हैं, परंतु हमारे ही कार्याधिक्य के कारण सर्वकार्य द्रुत गति से हो नहीं पाते हैं । फिर भी बड़ी उदारता से हमारे ट्रस्टीगण, वाचक, स्वाध्याय प्रेमी इसे सहन करते हैं एवं संस्थाको अपनाते हैं यह उनकी बड़प्पन है, हम सदा उनके प्रति कृतज्ञ रहेंगे । वीर सं० २४९५ वैशाख सु० ३ कल्याण भवन सोलापुर २ विनीत वर्धमान पाश्वनाथ शास्त्री ऑ॰ मंत्री, आचार्य कुंथूसागर ग्रंथमाला

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