Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 12
________________ पर पंचम गणधर श्री सुधर्मास्वामीजी फ। २५०० वें का जीवनचरित्र युक्त स्तवन निर्वाण के रचयिता - पूज्य आचार्य श्रीज्ञानविमलसूरि म.. वर्ष में (देशी - नायकानी) सोहम गणधर पांचमा रे लाल, अग्निवैशायन गोत्र सुखकारी रे; कोल्लाग सन्निवेशे थयो रे लाल, भद्दिला धम्मिल पुत्र सुखकारी रे. सोहम. ।।१।। उत्तरा फाल्गुनी ए जण्यो रे लाल, पंचसया परिवार सुखकारी रे; वरस पचास घरे रया रे लाल, व्रत बेंतालीस सार सुखकारी रे. सोहम. ।।२।। आठ वरस केवलीपणे रे लाल, एक शत वरस नुं आय सुखकारी रे; वाधे पट्ट परम्परा रे लाल, आज लगे जस थाय (यावत् दुष्पसहराय) सुखकारी रे. सोहम. ॥३॥ सम्पूरण श्रुतनो धणी रे लाल, सर्वलब्धि भण्डार सुखकारी रे; बीस वरस जिनथी पछी रे लाल, शिव पाम्या जयकार सुखकारी रे. सोहम. ।।४।। उदय अधिक कंचन बने रे लाल, शत शाखा विस्तार सुखकारी रे; नाम थकी नवनिधि लहे रे लाल, ज्ञानविमल गणधार सुखकारी रे. सोहम.।।५।। आज की मुनिवृन्द की पट्टपरम्परा श्री सुधर्मास्वामी की पट्टपरम्परा कहलाती है। अर्थात् - अभी के सभी मुनिवृन्द श्रीसुधर्मास्वामी के संतानीय हैं। हम भी उन्हीं के परम्परागत संतानीय हैं। उन्हीं के निर्वाण के चल रहे २५०० वें वर्ष की पावन स्मृति में प्रस्तुत यह सुबोधिका टीका तथा हिन्दी विवेचनामृत युक्त श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्र के तीसरे - चौथे अध्याय का यह 'अनुपम ग्रन्थ' परम पूज्य श्रुतकेवली पंचमगणधर श्री सुधर्मास्वामीजी म., को मैं कृतज्ञभाव से सविनय... सादर... सबहुमानपूर्वक समर्पित करता हुआ विशेष हर्ष-आनन्द पाता हूँ। अभी विश्ववन्द्य-विश्वविभु-देवाधिदेव श्री महावीर परमात्मा के पंचम गणधर श्री सुधर्मास्वामीजी का यह २५०० वाँ निर्वाण-वर्ष चल रहा है। सादर - आचार्य विजयसुशीलसूरि समर्पण

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