Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 11
________________ २५०० वें निर्वाण वर्ष में जन्म जन्मनक्षत्र 5 प्रभु श्रीमहावीर भगवान के जन्म से आठ वर्ष पहले अर्थात् श्रीवीरनिर्वाण से ८० वर्ष पूर्व लिच्छवी गणराज्य की राजधानी वैशाली कोल्लाग सन्निवेश में आपका जन्म हुआ था। उत्तरा फाल्गुनी । * पिताश्री का नाम अग्निवेशायन क्षेत्रीय धम्मित विप्र । माताजी का नाम * ज्ञानाभ्यास स...म...र्प...ण * मोक्ष 卐 श्री जैनशासन के चरमतीर्थाधिपति श्रमण भगवान महावीर परमात्मा के पंचम गणधर श्रीसुधर्मास्वामी महाराजा भद्रिला । संसारी अवस्था में चौदह विद्या के पारंगत । संशय इस भव में जो जीव जैसा है, वैसा परभव में होता है या भिन्न स्वरूप में? दीक्षा - श्रीवीरनिर्वाण संवत् ३० वर्ष पूर्व, वैशाख सुद ११ के दिन पचास वर्ष की अवस्था में। * केवलज्ञान जब श्रीमहावीरस्वामी भगवान का निर्वाण (मोक्ष) हुआ उस समय श्रीसुधर्मास्वामी गणधर की आयु ८० वर्ष की थी। आपको ६२वें वर्ष में, श्रीवीरसंवत् १२वें वर्ष में पंचम केवलज्ञान प्राप्त हुआ था। पंचम केवलज्ञान प्राप्त होने के पश्चात् श्रीस्वामीजी ने चतुर्विध संघ की जवाबदारी अपने शिष्यरत्न श्री जम्बूस्वामी महाराज को सौंपी। 1 तत्पश्चात् ८ वर्ष पर्यन्त केवली पर्याय पूर्ण कर के श्री वीरनिर्वाण संवत् २० में आयुष्य के अन्त में एक मास. का अनशन कर के १०० वर्ष का आयुष्य पूर्ण कर श्रीराजगृही नगर के गुणशील चैत्य में निर्वाण (मोक्ष) को प्राप्त हुए। जिस समय प्रभु श्रीमहावीर भगवान मध्यम अपावापुरी में पधारे, यहाँ पर प्रभु ने श्रीइन्द्रभूति आदि ११ मुख्य विप्रों-ब्राह्मणों युक्त ४४०० मानवों को दीक्षा प्रदान की। श्री इन्द्रभूति ग्यारह गणधरों को लब्धि प्राप्त हुई। अन्तर्मुहूर्त में उन सभी ग्यारह गणधरों ने द्वादशांगी यानी बारह अंगसूत्रों की रचना की। उस समय प्रभु श्री महावीर भगवान ने उसकी अनुज्ञा प्रदान की। मुख्य गणधर श्री इन्द्रभूति-गौतमस्वामी को संघनायक के रूप में विभूषित किया। 'द्रव्य-गुण-पर्याय' द्वारा समस्त शासन सौंपने में आता है। पंचम गणधर श्री सुधर्मास्वामी महाराज को भगनायक के सम्माननीय पद से समलंकृत किया गया। सभी गणधरों में श्रीसुधर्मास्वामीजी का आयुष्य विशेष था। ग्यारह गणधरों में से नव गणधरों ने भगवान महावीर की विद्यमानता में निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त किया था। 555 सादर समर्पण

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