Book Title: Tattvagyan Tarangini
Author(s): Gyanbhushan Maharaj, Gajadharlal Jain
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 6
________________ • प्रकाशकीय निवेदन . धर्मका मूल सम्यग्दर्शन है, और उसे प्राप्त करनेके लिये विपरीताभिनिवेशरहित-तत्त्वज्ञानहेतुक निजात्मज्ञान अत्यन्त आवश्यक है, कि जो इस 'तत्त्वज्ञान-तरंगिणी' पुस्तकमें दर्शाया गया है । इस युगमें क्रियाकांडविमूढ़ जैनजगतको सम्यग्दर्शनका महत्त्व व उसका उपाय समझमें आया हो तो उसका सब श्रेय परमोपकारी पूज्य गुरुदेव श्री कानजीस्वामीको है; उनके ही पुनीत प्रतापसे मुमुक्षु जगतमें सम्यग्दर्शनके विषयभूत शुद्धचिद्रपकी चर्चा प्रवृत्त हुई है ।। निजशुद्धचिपकी रुचिके पोषण हेतु अध्यात्मसाधनातीर्थ श्री सुवर्णपुरीमें परम-तारणहार पूज्य गुरुदेवश्रीकी एवं प्रशममूर्ति पूज्य बहिनश्री चम्पावेनकी मंगलवर्षिणी धर्मोपकार-छायामें प्रवर्तमान देवगुरुभक्तिभीनी अनेक गतिविधिके अंगभूत प्रकाशनविभाग द्वारा, यह तत्त्वज्ञान, तरंगिणी 'की यह द्वितीय आवृत्तिका प्रकाशन करते हुए अति हर्प होता है । यह पुस्तक ‘श्री वीतराग-विज्ञानप्रकाशिनी ग्रन्थमाला,' खण्डवासे प्रकाशित तत्त्वज्ञान-तरंगिणीके आधारसे मुद्रित कराई गई है । प्रस्तुत प्रकाशनमें मूलपाठके भावोंके सुमेल हेतु श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम, अगाससे प्रकाशित गुजराती तत्त्वज्ञान-तरंगिणीके अन्वयार्थको ध्यानमें ले कहीं-कहीं कुछ सुधार किया गया है । अतः उक्त दोनों प्रकाशिनी संस्थाके आभारी हैं । आशा है, मुमुक्षुसमाज ट्रस्ट के इस प्रकाशनसे अवश्य लाभान्वित होगा। - इस पुस्तकके सुन्दर मुद्रणकार्यके लिये कहान मुद्रणालय 'का ट्रस्ट आभारी है। वि. सं. २०५४ वैशाख शुक्ला २ श्री कहानगुरु १०९वा जन्मोत्सव प्रकाशनसमिति श्री दि. जैन स्वाध्यायमंदिर ट्रस्ट, सोनगढ ( सौराष्ट्र) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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