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तत्त्वबिन्दुः ७. संभिन्न श्रोतबुद्धि बार योजन लंबायमान विस्तार अने नव योजन पहोल्छं सैन्य त्यांथी चक्रवर्तिना सैन्यनो शब्द,इस्ति,घोग मनुष्य, गाडां, स्थ, प्रमुख तेनो शब्द सर्व जाणे. राइ,सरसव हाथीना उपरथी खरेतो तेनो सूक्ष्मशब्द पण सांभळे, उत्कृष्ट कर्णेन्द्रियनु बल तपोधनने होय तेथी एक कालमा सर्व शन्द सांभळे. तेने संभिन्नश्रोतलब्धि कहेछे.
८ आठमी दुरास्वादलब्धि लक्षण कहेछे. मुनिवर्य संयमबलो.
त्पन्न रसनेन्द्रियक्षयोपशमभावबलथी, भोगविकार रहीत ' " एवा नव योजन अधिकक्षेत्रे अनेक रस विकार भिन्न भिन्न
जाणे, स्वाद जाणे. परिमल जाणे, स्पर्शरसरूप देखे.स्पर्शरस गंध रूप शब्दना भाव निरागपणे जाणे,तेने दुरास्वादनबुद्धि लब्धि कहेछे.
९ स्पर्शलब्धि १० स्वादलब्धि ११ घाणस्वादलब्धि १२ शब्द .. स्वादलब्धि १३ दशपूर्वधरणलब्धि, १४ चतुर्दशपूर्वधरण
समर्थलब्धि ए षड्लब्धि जेम उपजे तेम प्रकार बसावेछे जिनशासन भक्तिकारक देवांगना, गुरूसाधु भक्तचउद पूर्वनी अधिष्ठाता, आपणा गुरूनी परीक्षा करे. रोहिणी प्रमुख विद्यादेवी पञ्चशत, भक्तिथी निर्मलभाव प्रकाशती आगे रहीने नमस्कार करीने अनेक प्रकारे गुणस्तुति करे, प्रार्थना करे. दयाभण्डार, निर्ग्रन्थ, निरीहभावथी क्लेश घणो सहेछे, ते कहे के हे मुनीश्वर तुमारी आज्ञा इच्छुछु, जे कार्य कहेशो ते अमो करीशुं. इत्यादि अनेक वचन. विद्या देवी बोले, तोपण मुनीवर आत्मस्वभावमां लीन रहे. सांसारिकमुखनी वान्ग