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तत्वबिन्दु
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४९९ बाह्यतपजप प्रतिलेखना पूजा प्रतिक्रमण आदि बाह्यस्थूलधर्मनी
क्रियाओछे. धर्मध्यान, पिंडस्थ, पदस्थ, रूपस्थ, रूपातीत, धारणा, आत्मामां रमणता, आदि आत्मधर्मनी सूक्ष्मक्रियाओछे. स्थूलक्रियाओतो अज्ञानी पण करी शकेछे. पण धर्मनी सूक्ष्म क्रियाओ तो ज्ञानीज करी शकेछ. सूक्ष्मध्यानादिक धर्मनी क्रिया करनार अनंतकर्मने दूर करेछे. बाह्यक्रिया करनार करतां ध्यानादिक अंतर सूक्ष्मक्रिया करनार अनंत गुण विशेष उच्च पदवी धारक जाणवो. ध्यानादिक सूक्ष्म अंतर क्रिया विना मुक्ति थती नथी, माटे जे पुरुषोसूक्ष्म क्रिया करनारने निश्चय वादी अक्रियवादी कही निंदेछे. हेलना करेछे. तेणे तीर्थकरनी निंदा हेलना करी एम जाणवू. स्थूल बाह्यधर्मनी क्रियाओमाथी सूक्ष्मध्यानादिक क्रियामां उतरतां अनुभव प्राप्त थायछे. अने तेथी केवलज्ञान प्राप्त थायछे.
५०० गमे तेवा दुष्ट शत्रुथी जे अनिष्ट हुं नथी. ते अनिष्ट राग
द्वेषधी थायछे.
५०१ परनी निन्दा करनार जे परने दोषो देछे. ते ते दोषो ते पोते
पामेछ. परनी निन्दा करनार- मुख पण देखवालायक नथी.