Book Title: Tattvabindu
Author(s): Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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तत्वबिन्दुः
(५७) राथी बांधेला सोयोना जथ्था समानछे. निधत्तकर्म दृढबंधनथी बांधेलं अने निकाचितकर्म अत्यंत आकर अने स्पृष्टकर्म तो वस्त्रपर लागेली धूळ समान शिथिल अवबोधq.
५१४ ज्ञानिनी बाह्यचेष्टा करतां अन्तर परिणति जोवानी आवश्य
कताछे, आत्माना शुभाशुभ अध्यवसायथीन मुख्यताए शुभाशुभ बंध पडेछे. बाह्यचेष्टा आदि अनुमानथी परीक्षा थाय तेमां एकांत सत्य परखातुं नथी.
५१५ जे एक जीवने द्रव्यभावथी जैन दर्शन पमाडेछ. ते चउद
राजलोक स्थित जीवने अभयदान आपेछे. कारण के जैन धर्मथी मुक्ति पामतां चउदराजमां वसनारा जीवोनी हिंसा कस्तो बंध पडेछे.
५१६ आत्मतत्व ज्ञान अर्पनार सद्गुरुने सर्वस्व समर्पण करवू जोइए.
५१७ अपाय, धृति (धारणा) बे विशेषबोध स्वभावथी ज्ञान मिश्र . छे अने अवग्रह तथा इहाछे ते अर्थ पर्याय विषयत्वथी सा

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