Book Title: Tattvabindu
Author(s): Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 177
________________ ( ४) तत्वविन्दुः ५५९ पांच प्रकारनाः असराय, हास, रति, अरति, मय, जुगुप्सा, । शोक, शोक, काम, मिथ्याल, अज्ञान, निद्रा, अविरति, राग, देष ए अष्टादश दोषरहित तीर्थकरदेव जाणवा. .. ... ५६० १ घणुं भोजन करवाथी, २ अति निद्राथी, ३. अतिजागवायी । ४ झाडो (विष्टा ) रोकवाथी, ५ पेशाब ( मूत्र) रोकवाथी. ६ मार्गमां घणुं गमन करवाथी, ७ प्रतिकूल भोजन करवाथी, ८ इन्द्रियोना काम अत्यंत विकारथी, रोगोनी उत्पत्ति थायछे. मूत्रनिरोधथी चक्षुने हानि थायछे. झाडाना निरोधथी जीवि.. तव्यनो नाश थायछे, ... ... .. ५६१ क्षेत्र अने कालनी अपेक्षाए अवधिज्ञानना असंख्यात भेद छ, .: द्रव्य अने भावनी अपेक्षाए अवधिज्ञानना अनन्त भेदछे. क्षेत्र अने काल, असंख्यछे तेथी अवधिज्ञानना असंख्य भेद घटे छे. पुद्गल द्रव्य अनंत अने भाव ( पर्याय ) पण पुद्गलद्रव्यना । अनन्तछे माटे अनन्त भेद कह्याछे. (वि) ५६२ देवता अने नारकीओने क्षयोपशमभावे भवमत्ययिक अवधि ज्ञानछे अने मनुष्य तथा तिर्यचने गुणपत्ययिक अवधिज्ञान होयछे. (विशे)

Loading...

Page Navigation
1 ... 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202