Book Title: Tattvabindu
Author(s): Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 197
________________ तत्वविन्दुः छे. स्थूलद्रव्यछे तेथी त्यां अन्हुमुहूर्त अवधिज्ञान उपयोगस्थि: तिछे. गुणो तेथी सूक्ष्मछे तेथी तेओमां आठ- समय. अने गुण करतां पण पर्याय सूक्ष्मछे तेथी त्यां सात समय पर्यंत अवधिज्ञानना उपयोगर्नु अवस्थान कपु. २२७ अवधिज्ञानमां षट्गुणभागनी हानि वृद्धि संभवेछे. तेनुं ध्यान कर. २२८ अवधिज्ञानमा फड्डक होयछे. एकजीवने संख्यात अने असं यछे. फड्डक त्रण प्रकारनाछे. अनुगामिक अननुगामिक,अने अनुगामिक अननुगामिक उभयमिश्र ए त्रण फड्डक पण वळीत्रण प्रकारे होयछे. प्रतिपाती, अप्रतिपाती अने प्रतिपाती अप्रतिपाति उभयरूपमिश्र, ते मनुष्य अने तिर्यंचना अवधिज्ञानमां होयछे. देव अने नारकमां नथी. प्राय अनुगामिक अप्रतिपाति फड्डको, तित्र विशुद्धि युक्तपणाथी तीव्र कहेवायछे. अननुगामि प्रतिपाति फड्डको तो अविशुद्धताथी मंद कहेवायछे. मिश्र तो मध्यम कहेवायछे. (वि) ६२९ अपवरक जालकांतरस्थप्रदीपप्रभोपमफड्डकावधि ज्ञान होय छे. (वि.) अपवरकादिनालकांतरस्थ प्रदीप प्रभा निर्ग मस्थानानीवावधिज्ञानावरणे क्षयोपशमनन्यान्यवधिज्ञान निर्गमस्थानानीहफडकान्युच्यन्ते ॥ 1 . ६३० नवग्रैवेयकमां अभवी तथा भवी मिथ्या दृष्टि देवता छे तेने विभंग ज्ञान होयछे.

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