Book Title: Tattvabindu
Author(s): Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 172
________________ तत्वबिन्दु: ( १६३ ) सम्यग्दृष्टि देवताओछे. ते विशिष्ट अवधिज्ञानथी आहारना पुद्गलोने जाणेछे. अने चक्षुवडे पण देखेछे, चक्षुनुं पण विशिष्टपपुंछे. मिध्यादृष्टि देवताओ तो जाणता पण नथी अने देखता पण नथी. प्रत्यक्ष अने परोक्षज्ञान, तेओने अस्पष्टछे. संग्रहणी वृत्तिमां तो अनुत्तर देवोज जाणे देखेछे, पण नारक तथा ग्रैवेयक पर्यंतना देवताओ जाणता देखता नथी. एम कधुं छे. प्रज्ञापनावृत्तिमां पण एम अभिप्रायछे तत्त्व तो ज्ञानि गम्यछे. कार्मण शरीर पुद्गलोने अनुत्तर देवो जाणेछे अने देखेछे. पण ग्रैवेयकांतो देवो जाणता नथी. तेमना अवधिमां ते पुद्गलो अगोचरछे: प्रज्ञापनावृत्ति इन्द्रियपद प्रथमोद्देशामां एम जणान्युं छे. ५३८ शुष्कवाद, विवाद, अने धर्मवाद आ त्रण प्रकारना वाद जाणवा. माध्यस्थदृष्टियी आत्महित माटे धर्मवाद थइ शकेछे. साधुओ धर्मवाद कारण छतां करवो. पण शुष्कवाद अने विवाद ए बे करवा नहीं. ५१९ चउदमा गुणस्थानकना चरम समये केवलज्ञानी मुक्ति जतां जे कर्म पुद्गलोने निर्जरेछे. ते परित्यक्त कर्म स्वभाव विशिष्ट परमाणु पुद्गलो सर्व लोकने पण स्पर्शेछे, मज्ञापनासूत्रवृत्ति इन्द्रियपद प्रथम उद्देशामां कांछे,

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