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तत्वविन्दु
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१९१ कार्मण शरीरथी कार्मण वर्गणा भिन्न छे. कथंचित् अभिन्नपण छे .
१९२ तेजस शरीरने काइ आचार्य अनादि मानता नथी.तेमनी मतमा
तेजोलब्धियी तेजस शरीर उत्पन्न थाय छे, अने ते कहेछे केक्रोधावेशे तेजोलब्धिथी-उष्णतेजः शरीर अने दया परिणामथी शोततेजः शरीर उत्पन्न थइ अनुक्रमे घात अने उपकार
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करे छे.
१९३ मनुष्य अने तिर्यच आहार पर्याप्ति एक समयमां पूरी करे अने
बाकीनी पर्याप्ति अन्तर्मुहूर्तमां करे.देवता अने नारकी आहार पयाप्ति अन्तर्मुहूर्तमांकरे.अनेबाकीनी पर्याप्तिया एकसमयमांमां करे.
१९४ एकपरमाणुनुमतिबिंब पडतुंनथी.अनंताणुक स्कंधर्नुमतिबिंबपडे,
१९५ औदारिक शरीर असंख्यातां अने औदारिक शरीर धारण
करनारा जीव अनंत. कारण के साधारण वनस्पतिमां अनंत जीवनुं एक शरीरछे.