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तत्वबिन्दु.
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४१३ एकेन्द्रियमां आहारादि दश संज्ञा छे, किन्तु ते विशिष्ठ संज्ञाना • अभावे असंज्ञी कहेवाय छे. कोडीथी कोइ धनवान् कहेवातो नथी. सामान्य रूपथी कोइ रूपवान कहेवातो नथी तेवी रीते मोहनीय आदि जन्य अविशिष्टसंज्ञाथी एकेन्दिय संझी गणाता नथी. (वि.)
४१४ ज्ञानाद्वैतनयवादि मत प्रमाणे सर्वज्ञेय वस्तु" ज्ञानरूप ठरवाथो केवलज्ञानना स्वपर्याय सिद्ध ठरेछे, पण वस्तुतः जोतां केवलज्ञानना स्वपर्याय अने परपर्याय अनंत सिद्ध ठरेछे, (वि.)
४१५ सर्व जीवोने अक्षरनो अनंतमो भाग उघाडोछे ते श्रुतज्ञानमां जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट भेदथी संभवेछे. सर्वथी जघन्य निगोदिया जीवने, सर्वथी उत्कृष्ट संपूर्ण श्रुतज्ञानिने, निगोद अने संपूर्ण श्रुतधारकनी मध्यनो भाग, मध्यम भेदमां गणवो. (वि)
४१६ दृष्टिवादोपदेशिकी संज्ञा करतां दीर्घकालीकी संज्ञा अविशुद्ध छे. दीर्घकालीक करतां हेतुवादोपदेशिकी संज्ञा अविशुद्ध छे. (वि.)