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Achar
जैनागम
भगवान् महावीर के उपदेशों का संग्रह उनके शिष्यों द्वार। बारह श्रुतांगों में किया गया जिनके परम्परागत नाम और विषय निम्न प्रकार है.----
१. आचाराङ्ग में मुनियों के चारित्र संबंधी नियमों का वर्णन है।
२. सूत्रकृताल में मुनियों के आचरण संबंधी और भी विशेष आदेश पाये जाते है। इस में अनेक दूसरे दर्शनों का भी वर्णन है।
___ ३. स्थानाङ्ग में तत्त्वों के भेद प्रभेदों का उनकी संख्या के कम से निरूपण है। जैसे चैतन्य की अपेक्षा जीव एक है। ज्ञान और दर्शन के भेद से वह दो प्रकार का है। उत्पाद, व्यय और धोव्य के भेद से वह तीन प्रकार का है। देव, मनुष्यादि चार गतियों में परिभ्रमण करने की अपेक्षा वह चार प्रकार का है। इत्यादि।
४. समवायाङ्ग में तत्त्वों का निरूपण उनके समवाय अर्थात् दव्य, क्षेत्र, काल व भाव की अपेक्षा समानता के अनुसार किया गया है। जैसे-द्रव्यसमवाय को अपेक्षा धर्मास्तिकाय, अधर्मास्ति काय, लोकाकाश और एक जीव के प्रदेश समान है। क्षेत्रसमवाय की अपेक्षा प्रथम नरक के प्रथम पटल का सीमन्तक नामक बिल, अढ़ाई दीप प्रमाण मनुष्यक्षेत्र, प्रथम स्वर्ग के प्रथम पटल का ऋजु नामक विमान और सिद्धक्षेत्र समान है। इत्यादि ।
५. व्याख्याप्रज्ञप्ति में प्रश्नोत्तर क्रम से जीवादि पदार्थों का व्यायान पाया जाता है।
६. ज्ञातृधर्मकथा में धर्मोपदेश और बहुविध कथाएं वर्णित है। ७. उपासकाध्ययन में गहस्थों के पालन करने योग्य धर्म का विधान है।
८. अन्तकृदशा में ऐसे दश मुनियों का चरित्र वणित है जिन्होंने अनेक उपसर्ग सहन करके संसार का अन्त किया और मोक्ष पाया ।
९. अनुत्तरोपपातिक में ऐसे दश मनियों का चरित्र वर्णित है जो घोर उगमर्ग सहन कर विजय आदि अनुत्तर विमानों में देव उत्पन्न हुए।
१०. प्रश्नव्याकरण में अपने धर्म की पुष्टि एवं परधर्म का खंडन करने वाले वर्णन व कथानक है।
११. विपाकसूत्र में पुण्य और पाप के फलों का वर्णन है।
१२. दृष्टिवाद के परिकर्म, सूत्र, प्रथमानुयोग पूर्वगत और चूलिका, इस प्रकार पांच खंड थे। परिकर्म में चन्द्र, सूर्य, जम्बद्वीप, द्वीपसागरों का विवरण तथा द्रव्यों का विशेष निरूपण किया गया था। सूत्र में प्राचीन काल में प्रचलित ३६३ मतों का विवेचन किया गया था। प्रथमानुयोग में राजाओं और ऋषियों के वंशानुक्रम का पुराण वणित था। पूर्वगत के भीतर इन चौदह पूर्व अर्थात् प्राचीन परम्परागत मलों व वादों का विवरण था-(1) आग्रायणी (२) उत्पाद
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