Book Title: Tao Upnishad Part 02
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 334
________________ ताओ उपनिषद भाग २ लाओत्से बिलकुल उलटा आदमी था। वहां कोई नियम ही न थे। क्योंकि नियम ही लाओत्से के लिए पतन था। नियम का मतलब ही है कि बीमारी आ गई; अब उसे बांधना है, सम्हालना है, किसी तरह चलाना है। ___ कनफ्यूशियस मिलने गया लाओत्से को। तो कनफ्यूशियस ने कहा कि आपका क्या संदेश है? लोगों को मैं अच्छा बनाना चाहता हूं; आप मुझे कुछ सलाह दें, यह मैं कैसे करूं? तो लाओत्से ने कहा कि तुम अच्छे बनाने की कोशिश भर मत करो। नहीं तो तुम लोगों को बुरा बनाने में सफल हो जाओगे। तुम्हारी इतनी कृपा काफी होगी कि तुम लोगों को अच्छा बनाने की कोशिश मत करो। कनफ्यूशियस की तो कुछ समझ में न आया; क्योंकि उसके तो चिंतन की एक धारा थी। उसने कहा, यह भी क्या बात है? इससे तो अराजकता फैल जाएगी! इससे तो अनार्की हो जाएगी! अगर हम लोगों को अच्छा न बनाएं, तो सब अराजकता हो जाएगी। लाओत्से ने कहा, राजकता लाने की चेष्टा से अराजकता पैदा होती है। कनफ्यूशियस ने कहा कि लोग बिलकुल स्वच्छंद हो जाएंगे। लाओत्से ने कहा, नियम के कारण ही लोग स्वच्छंद होते हैं। अगर नियम नहीं, तो कैसी स्वच्छंदता? लोग सहज होंगे। नियम हैं, तो लोग स्वच्छंद हो जाएंगे। और सब नियम सहजता के विपरीत होते हैं; इसलिए सब नियम लोगों को स्वच्छंद होने के लिए मजबूर कर देते हैं। यह थोड़ा समझने जैसा है, सब नियम लोगों को स्वच्छंद होने के लिए मजबूर कर देते हैं। सहजता तो एक प्रवाह है, और नियम तो एक बांध है। ___मैं छोटा था, तो मेरे स्कूल के एक शिक्षक की मृत्यु हुई। उन्हें स्कूल में हम सारे लोग भोले शंकर कह कर चिढ़ाया करते थे। बहुत भोले आदमी थे। सच में ही भोले आदमी थे। और सब तरफ से उन्हें परेशान किया जा सकता था। और सब तरफ से चौबीस घंटे स्कूल में वे परेशान किए जाते थे। उनकी मृत्यु हो गई। सारे स्कूल के बच्चे उनको अंतिम विदा देने गए। उनसे प्रेम भी था, लगाव भी था। उनको इतना परेशान भी किया हुआ था। मैं सामने ही खड़ा था, उनकी अरथी के बिलकुल पास। उनकी पत्नी बाहर निकली और जोर से उनकी छाती पर गिर . पड़ी और उसने कहा, हे मेरे भोले शंकर! तो मुझे हंसी रोकनी बिलकुल मुश्किल हो गई। यह कभी नहीं सोचा था कि मरने पर और उनकी पत्नी उनको भोले शंकर कहेगी। भोले शंकर कह कर तो हम उन्हें चिढ़ाते थे। तो उनकी मौत की जो गमगीनी थी, वह तो खतम हो गई। वह तो भूल ही गया खयाल कि वे मर गए हैं और अभी हंसना उचित नहीं है। हंसी इतने जोर से फैली कि करीब-करीब पूरे स्कूल के लड़के हंसने लगे। क्योंकि सभी को पता था कि भोले शंकर! हद हो गई! यह तो मजाक की आखिरी सीमा हो गई। बहुत डांट-डपट पड़ी। घर लौट कर हर एक के घर पर डांट-डपट पड़ी; और कहा गया कि अब तुम्हें कभी ऐसी जगह नहीं ले जाया जा सकता। आदमी मर गया और तुम हंस रहे हो! कुछ नियम का खयाल होना चाहिए। फिर इतने जोर से हंसने की क्या बात थी? अगर हंसी भी आ गई थी और जब बताया कारण, तो सब को समझ में आया कि हंसी का कारण था तो भी अपने मन में ही। पर कारण जोर से हंसने का यह था कि नियम के खयाल के कारण सभी ने रोकने की कोशिश की। फिर रोकना इतना असंभव हो गया कि वह इतने जोर से फूटी कि वह एक्सप्लोसिव हो गई। उनकी पत्नी के भी आंसू सूख गए। वह भी घबड़ा कर खड़ी हो गई कि क्या हुआ! नियम अक्सर विपरीत को शक्ति देते हैं। नियम था साफ था कि नहीं हंसना है। हंसने की कोई बात बिलकुल ही गैर-मौजूं है। लेकिन जिंदगी नियम नहीं मानती। वहां भीतर तो हंसी आ गई, और वह बिलकुल सहज थी। कोई दुर्भाव भी न था। लेकिन नियम ने उसे रोका। नियम बांध बनाता है। जो सहज धारा आ गई थी, नियम ने बांध बनाया। और बांध जब टूटेंगे, तो स्वच्छंदता पैदा होती है। बांध के कारण पैदा होती है, नदियों के कारण नहीं। और जब बांध टूटते हैं, तो भयंकर उत्पात हो जाता है। 324

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