Book Title: Tao Upnishad Part 02
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 363
________________ सिद्धांत व आचरण में नहीं, सरल-सहज स्वभाव में जीवा और एक गिलास पानी कोई दे दे, तो आप हीरा दे दें। मूल्य तो बिलकुल नहीं है। कीमत भी आदमी की बनाई हुई है, ईजाद की हुई है। और हमने हर चीज पर कीमत लगा दी है। मूल्यहीन मूल्यवान मालूम होता है। मूल्यवान मूल्यहीन मालूम होता है। हमारी कीमत की वजह से। लाओत्से कहता है, हटाओ उपयोगिता, छोड़ो चालाकी; और चोर और लुटेरे अपने आप विदा हो जाएंगे। ___अगर जीवन सहज हो और अगर जीवन मूल्य पर निर्भर हो, तो लाओत्से बिलकुल ही ठीक कहता है, चोर और लुटेरे नहीं रह जाएंगे। चोर और लुटेरे पैदा ही इसलिए होते हैं कि हमने सारे जीवन को उपयोगिता की भाषा में बांध दिया। और जब जीवन एक उपयोगिता है, तो चोरी हो सकती है। मूल्य है, तो चोरी नहीं हो सकती। चोरी उन्हीं चीजों की हो सकती है, जो बाजार में हैं। और सारी जिंदगी बाजार में है। पांच हजार, दस हजार साल की निरंतर चेष्टा का परिणाम यह हुआ कि हर चीज बाजार में है। बाजार के बाहर कुछ भी नहीं है। और अगर बाजार के बाहर कुछ भी नहीं है, तो हमें स्वभाव का, सत्य का, आत्मा का कोई भी पता नहीं चल सकता है। लाओत्से कहता है, गणित को हटा दो, कीमत को हटा दो, होशियारी को हटा दो, ज्ञान को हटा दो। यह न्याय, यह मानवता, यह नीति, यह सिद्धांत-ये हटा दो। और सहज हो जाओ। और जब वह कहता है कि नो दि सिंपल सेल्फ, तो वह यह नहीं कहता कि कोई तुम्हारे भीतर ब्रह्म विराजमान है, उसको जानो। वह कहता है, इन बातों में मत पड़ो। जो भी सहज तुम्हारे भीतर चेतना की छोटी सी किरण है-जो भी, उसे बड़े नाम मत दो-उसकी तलाश करो, उसको खोज लो। और जिस दिन तुम अपने सहज झरने को पा जाओ जीवन के, तब उसके संगीत में ही लीन रहो। जिस दिन तुम अपने झरने को पा जाओ, तब उसी में बहो। जिस दिन तुम अपने भीतर का द्वार खोल लो, तब वही तुम्हारा मंदिर है। यह जो भीतर छोटा सा छिपा हुआ राज है, यह जो सीक्रेट है, जिस दिन तुम्हारे हाथ में आ जाए, उस दिन तुम सम्राट की गरिमा को उपलब्ध हो जाते हो। और यह तभी उपलब्ध हो सकेगा, जब यह जो जाल तुमने अपने चारों तरफ खड़ा किया है, इसे तुम तोड़ने में सफल हो जाओ। यह जाल बड़ा है। और इस जाल को हम रोज बढ़ाए चले जाते हैं, इसे बड़ा करते चले जाते हैं। धीरे-धीरे हमारा जो सहज जीवन का स्वर है, वह बिलकुल खो जाता है। उसका हमें कोई पता ही नहीं रह जाता है। आज इतना ही। फिर हम कल बात करेंगे। पांच मिनट रुकें, कीर्तन करें, और जाएं। 353

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