Book Title: Tao Upnishad Part 02
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

View full book text
Previous | Next

Page 385
________________ क मित्र ने पूछा है: क्या ककने के लिए दाँइना जकसी नहीं ? जरूरी है। लेकिन आप दौड़ ही रहे हैं। आप काफी दौड़ लिए हैं। लंबे जन्मों की दौड़ आपके पीछे है; उसका ही आप परिणाम हैं। अब और दौड़ना जरूरी नहीं है; अब रुकना जरूरी है। लेकिन हमारा मन खुद को धोखा देने के लिए बहुत तरकीबें निकाल लेता है। एक धर्मगुरु ने छोटे बच्चों को बहुत समझाया कि पाप से मुक्त होना हो, तो प्रायश्चित्त करना चाहिए, प्रार्थना करनी चाहिए, परमात्मा के समक्ष अपना अपराध स्वीकार करना चाहिए, कसम लेनी चाहिए कि दुबारा ऐसा अपराध नहीं करेंगे। बहुत समझाने के बाद उसने बच्चों से पूछा कि पाप से मुक्त होने के लिए क्या जरूरी है? तो एक छोटे बच्चे ने कहा, पाप करना जरूरी है। निश्चित ही, पाप से मुक्त होने के लिए पाप करना तो जरूरी है ही। लेकिन पाप करने से ही कोई मुक्त नहीं हो जाएगा। पाप करने के बाद कुछ और भी करना होगा। निश्चित ही, रुकने के लिए दौड़ना जरूरी है। लेकिन दौड़ने से ही कोई नहीं रुक जाएगा। और दौड़ तो चल ही रही है। जिसे हम जीवन कहते हैं, वह दौड़ है। इसलिए अपने मन को ऐसा मत समझाना कि मैं रुकने के लिए दौड़ रहा हूं। रुकने को हम भविष्य के लिए स्थगित कर सकते हैं कि अभी दौड़ लें काफी, फिर रुकेंगे। लेकिन दौड़ हम काफी लिए हैं। देर वैसे ही काफी हो चुकी है। यह हो सकता है, हमारा मन अभी दौड़ने से न भरा हो। मन कभी भरता भी नहीं। जो भर जाए, वह मन ही नहीं है। मन तो दौड़ाता ही रहेगा। एक दिशा बदलेगा, दूसरी दिशा बदलेगा। एक लक्ष्य बदलेगा, दूसरा लक्ष्य बदलेगा। मन तो दौड़ाता ही रहेगा। लेकिन अगर यह दौड़ दुख हो, संताप हो, पीड़ा हो? और है। दौड़ सिवाय दुख के और कुछ हो नहीं सकती। लेकिन हमारे मन की तर्कणा यह है कि हम सोचते हैं, दुख इसलिए है कि हम थोड़ा धीमे दौड़ रहे हैं। जरा जोर से दौड़ें, तो पहुंच जाएं मंजिल पर; दुख क्यों हो! या हम सोचते हैं कि दुख इसलिए है कि दूसरे हम से तेज दौड़ रहे हैं, वे पहले पहुंच जाते हैं और हम चूक जाते हैं। या हम सोचते हैं कि दौड़ तो बिलकुल ठीक है; रास्ता हमने गलत चुन लिया है, जिस पर हम दौड़ रहे हैं। जो ठीक रास्ता चुन लेते हैं, वे पहुंच जाते हैं। या हम सोचते हैं कि दौड़ तो ठीक ही है, रास्ता भी ठीक है लेकिन जो हम पाना चाहते हैं, विषय हमारी वासना का, शायद वह गलत है। धन को बदल लें धर्म से, संसार को बदल लें अध्यात्म से, तो फिर दौड़ पूरी हो सकती है। नहीं होगी। दौड़ ही गलत है। न तो रास्ते गलत हैं, न दौड़ने वाला गलत है, न दौड़ने का ढंग और गति गलत है, और न जिसके लिए हम दौड़ रहे हैं वह लक्ष्य गलत है। दौड़ ही गलत है। 375

Loading...

Page Navigation
1 ... 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412