Book Title: Tao Upnishad Part 02
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 400
________________ ताओ उपनिषद भाग २ 390 लेकिन मकान घर नहीं होता। मकान तो सभी हैं। कौन सा मकान घर होता है आपका? जिसके बीच और आपके बीच एक आत्मैक्य स्थापित हो जाता है, जिसके बीच और आपके बीच एक आंतरिक मिलन हो जाता है, तब मकान घर हो जाता है। अधार्मिक आदमी संसार में रहता है और धार्मिक आदमी परमात्मा में। संसार और उसके बीच एक संबंध, गहन संबंध हो जाता है। उसके भीतर के हृदय की वीणा पर जगत की सब चीजें संगीत उठाने लगती हैं। सूरज फिर पराया नहीं है। और चांद-तारे फिर दूर नहीं हैं। सभी कुछ अपना है। और यह सारा विराट ब्रह्मांड अपना घर है। ऐसी जो प्रतीति है, वह धार्मिकता है। अगर आप इस जगत में एक परिवार को खोज रहे हैं, एक प्रेम को, तो आप धर्म को खोज रहे हैं। अगर आप एक व्यक्ति के भी प्रेम में पड़ते हैं, तो आपने जगत के एक हिस्से को धार्मिक बना लिया। फिर जितना जिसका बड़ा है परिवार, उतना है उसका गहन आनंद । कुछ लोग ऐसे हैं कि वे ही उनका अकेला परिवार हैं। कहीं उनका कोई नाता-रिश्ता नहीं है। फिर अगर ऐसे लोगों को लगने लगता है कि हम आउटसाइडर हैं...। कोलिन विल्सन ने एक किताब लिखी है - दि आउटसाइडर । इस युग के लिए प्रतीक- किताब है। इस युग हर आदमी को लगता है कि मैं एक अजनबी हूं। क्यों हूं ? किससे मेरा क्या संबंध है ? कौन मेरा, मैं किसका ? कहीं कोई दिखाई नहीं पड़ता जोड़ । उखड़े उखड़े लोग, जैसे वृक्ष को जमीन से उखाड़ दिया हो और हवा में लटका दिया हो, वैसे हम हैं । धार्मिक होने का अर्थ है, जड़ों की खोज । सिमोन वेल ने एक किताब लिखी है - दि नीड फॉर दि रूट्स । इस सदी में थोड़े से धार्मिक व्यक्तियों में वह महिला भी एक थी । उसने लिखा है कि धर्म जो है, वह जड़ों की तलाश है। यह जो लटका हुआ आकाश में, अधर में लटका हुआ वृक्ष है - सूखता हुआ, कुम्हलाता हुआ, तड़पता हुआ - इसको वापस जगह देनी है जमीन में। इसको फिर इसकी जड़ें मिल जाएं, यह फिर हरा हो जाए, इसमें फिर फूल आने लगें । धार्मिक होने का अर्थ है: अपनी ही खोज, अपने और जगत के बीच किसी संबंध की खोज। अपने और जगत के बीच किसी गहन प्रेम की खोज । मैं नहीं कहता कि आप धार्मिक हो जाएं। लेकिन इस जमीन पर एक भी ऐसा आदमी नहीं है, जो धार्मिक नहीं होना चाह रहा है, भला वह इनकार ही क्यों न कर रहा हो। एक आदमी ऐसा खोजना मुश्किल है, जो धार्मिक न होना चाह रहा हो। धर्म को वह शब्द क्या देता हो, यह उसकी मर्जी । वह अपनी आकांक्षा को क्या रूप- आकृति देता हो, यह भी उसकी मर्जी । लेकिन मुझे अब तक ऐसा एक आदमी नहीं मिला, जो धार्मिक होने की तलाश में नहीं है। जिसको हम नास्तिक कहते हैं, वह भी तलाश में है। असल में, आदमी की तलाश ही यही है कि वह इस जगत में कोई असंगत और व्यर्थता तो नहीं है ? इस जगत में कोई उखड़ी हुई चीज, व्यर्थ की चीज तो नहीं है? इस जगत में उसके होने की कोई अर्थवत्ता है या नहीं, कोई सिग्नीफिकेंस? वह है, तो इस विराट में उसका कोई मूल्य है ? इस जगत में मूल्य की खोज धर्म है। आप हैं, आपका कोई मूल्य है इस जगत में ? कीमत हो सकती है; मूल्य कोई है आपका इस जगत में ? अगर आपका कोई मूल्य है, तो उसका अर्थ हुआ कि यह जगत आपके भीतर से विकसित हो रहा है; यह विराट चेतना की धारा आपके भीतर से विकासमान हो रही है। यह पूरा जगत आपको चाहता है; आपके हुए बिना अधूरा होता । आप न होते, तो यह जगत अधूरा होता, कुछ कमी होती, कुछ खाली जगह होती। आपने इस जगत को भरा है। इस जगत और आपके बीच कोई गहरा लेन-देन है। प्रतिपल यह जगत आपको दे रहा है और आपसे ले रहा है। आप और जगत के बीच एक गहरा अंतर्मिलन है । इस अंतर्मिलन की खोज ही धर्म है।

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