Book Title: Tao Upnishad Part 02
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 369
________________ आध्यात्मिक वासवा का त्याग व सरल स्व का उदघाटन आंख बंद करके आप बैठते हैं, लेकिन चीजें तो बाहर की ही दिखाई पड़ती रहती हैं। आंख भी बंद है, लेकिन दिखता तो संसार ही है। आंख बंद है, तो भी भीतर तो कुछ नहीं दिखता। बाहर की ही छबियां, बाहर के ही चित्र दिखाई पड़ते रहते हैं। कान भी बंद कर लें, तो भी आवाज बाहर की ही सुनाई पड़ती है। ध्यान को बाहर से खींच लें, तो भी ध्यान बाहर ही भागता रहता है। वह तीन चीजों के कारण! वे जो तीन हमारे बाहर के संबल हैं, वे अभी टूटे नहीं हैं। बार-बार निरंतर अभ्यास के कारण, सतत जन्मों-जन्मों की आदत के कारण मन वहीं-वहीं भाग जाता है। लाओत्से कहता है, ये तीन टूट जाएं, तो फिर सारी इंद्रियों को भीतर प्रवेश दिलाया जा सकता है। आंख बंद करके बैठे और एक ही बात खयाल रखें, बाहर की कोई चीज नहीं देखेंगे। आएंगे चित्र बाहर के, आदत के कारण, तो जानते रहें कि ये चित्र बाहर के हैं और मैं देखने को राजी नहीं। मेरी तैयारी देखने की नहीं है। मेरा कोई रस नहीं है, मेरा कोई आकर्षण नहीं है। अगर आप इतना कर सकें कि भीतर पहले रस का संबंध तोड़ लें बाहर के चित्रों से, तो शीघ्र ही आप पाएंगे, बाहर के चित्र आने कम हो गए। वे आते ही इसलिए हैं कि आप बुलाते हैं। मन में कोई भी मेहमान बिना बुलाया हुआ नहीं है। मन में कोई भी अतिथि ऐसे ही नहीं आ गया है, जबर्दस्ती नहीं आ गया है। आपका निमंत्रण है। हो सकता है, निमंत्रण देकर आप भी भूल गए हों। हो सकता है, निमंत्रण देकर आप बदल गए हों। हो सकता है, आपको खयाल भी न हो कि कब किस अचेतन क्षण में निमंत्रण दिया था। लेकिन आपके मन में जो भी आता है, वह आपका बुलाया हुआ है। और आपके मन में एक भी घटना ऐसी नहीं घटती, जिसके लिए आपके अतिरिक्त कोई और जिम्मेवार हो। ___ अगर रात सपने में आप हत्याएं करते हैं, बलात्कार करते हैं, तो वे आपने करने चाहे हैं इसीलिए! अपने से भी छिपा लिया होगा, खुद को भी धोखा दे दिया होगा। और सुबह उठ कर आप कहते हैं, सिर्फ सपने थे। सपनों का क्या? लेकिन सपने आपके हैं। और सपने अकारण नहीं हैं। और सपने बुलाए हुए हैं; सपने निर्मित हैं; आपने ही सिरजे हैं। इसलिए सपनों का क्या, ऐसा कभी मत कहना। सपने आपकी झलक हैं, आपकी खबर हैं, आपके मन की पर्तों की खबर हैं। यह मन है आपके पास। दिन में आप इसे झुठला देते हैं, रात यह मन फिर काम करने लगता है। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि अगर सपने न आएं, तो आप पागल हो जाएंगे। और ठीक कहते हैं। क्योंकि सपने में, दिन भर में जो-जो आप छिपा लेते हैं, दबा लेते हैं, रात उसका निकास हो जाता है, रेचन, कैथार्सिस हो जाती है। पहले हम सोचते थे कि अगर एक आदमी को ज्यादा दिन तक न सोने दिया जाए, तो वह पागल हो जाएगा। लेकिन अब मनोवैज्ञानिक कहते हैं, असली कारण नींद की कमी के कारण आदमी पागल नहीं होता, नींद न आए तो सपने नहीं देख पाता, इसलिए पागल हो जाता है। और उन्होंने बहुत प्रयोग किए हैं और अब यह एक प्रमाणित सत्य है। रात में आप कई दफे सपने देखते हैं। कोई बारह श्रृंखलाएं होती हैं सपनों की रात में। आप बारह बार सपने में प्रवेश करते हैं। बीच-बीच में छोटे-छोटे समय में आप सपने के बाहर होते हैं और नींद में होते हैं। तो वैज्ञानिकों ने इस पर प्रयोग किए हैं सैकड़ों लोगों पर। क्योंकि अब बाहर से जाना जा सकता है कि कब आप सपना देखते हैं और कब आप सपना नहीं देखते; आपकी आंख की गति बता देती है। तो आपकी आंख की गति को नापने का यंत्र लगा रहता है। जब आप सपना देखते हैं, तो आपकी पुतली वैसे ही चलने लगती है जैसे फिल्म को देखते वक्त चलती है। क्योंकि सपना एक फिल्म है। आपकी पुतली की गति बता देती है कि आप देख रहे हैं सपना। जब फिल्म नहीं चलती, सपना नहीं होता, पुतली ठहर जाती है। तो पुतली की गति बता देती है कि कब आदमी सपना देख रहा है, कब सपना नहीं देख रहा है। तो वैज्ञानिकों ने लोगों को सुला कर महीनों, वर्षों तक प्रयोग किए हैं। जब आदमी सपना देख रहा है, तब उसको रोक देना, जगा देना; जब भी रात में सपना देखे, तब उसे जगा देना। सात दिन में वह आदमी पागल होने के 359

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