Book Title: Tao Upnishad Part 02
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 378
________________ ताओ उपनिषद भाग २ जीसस के मरने की घड़ी करीब आ गई। उस रात वे पकड़े जाने को हैं। आखिरी क्षण है; शिष्य विदा हो रहे हैं। एक शिष्य पूछता है कि आखिरी वक्त है, अब जाते वक्त इतना तो बता दें कि स्वर्ग के राज्य में, जिसका आपने हमें आश्वासन दिया है, किंगडम ऑफ गॉड, उसमें आप तो परमात्मा के बगल में बैठेंगे, हम लोगों की जगहें क्या होंगी? ठीक है, परमात्मा सिंहासन पर होगा, आप उसके बेटे हैं, बगल में होंगे। हम लोग आपके संत हैं, हम लोग कहां बैठेंगे? शायद ईश्वर के राज्य शब्द को सुन कर ही लोभ के कारण ये लोग जीसस के पास इकट्ठे हो गए हैं। वहां परम आनंद होगा, वही इनकी वासना बन गई है। संसार को ये छोड़ सके हैं एक सौदे की तरह। एक बार्गेन है। और तथाकथित धार्मिक लोग समझाते रहते हैं चौबीस घंटे कि संसार में क्या रखा है! क्षणभंगुर है। कोई उनसे पूछे कि अगर क्षणभंगुर न हो, तब? तब सब कुछ रखा है? कहते हैं, इस आदमी के शरीर में क्या रखा है! हड्डी-मांस-मज्जा है। कहीं सोना-चांदी हो भीतर, फिर? कि आदमी में क्या रखा है, यह मर जाएगा कल! अगर यह न मरे, तो? वे किस बात को आपके भीतर जगा रहे हैं? वे सिर्फ आपके लोभ को, आपकी वासना को बदल रहे हैं। वे कह रहे हैं, इसमें क्या रखा है! उनका वासना से कोई विरोध नहीं है। जहां आप वासना को लगाए हैं, वह जगह क्षणभंगुर है, वहां से हटाओ, शाश्वत की तरफ लगाओ। लेकिन वासना को नहीं मिटाने की कोशिश है। लाओत्से जैसे लोग विषय बदलने को नहीं कहते, वासना ही मिटा देने को कहते हैं। इस फर्क को ठीक से समझ लें। मैं धन के पीछे दौड़ रहा हूं। कोई मुझे समझाता है, क्या पागलपन कर रहे हो, धन में क्या रखा है? कल मर जाओगे, मौत बड़ी चीज है, धन से भी बड़ी चीज है। धन मिले कि न मिले; मौत का मिलना बिलकुल पक्का है। वह मुझे डरा देता है। कहता है, कल मर जाओगे, कल का भरोसा नहीं है। और तुम धन के पीछे दौड़ रहे हो। अगर दौड़ना ही है, तो उसके पीछे दौड़ो, जो असली धन है। भगवान के पीछे दौड़ो। मेरा लोभ डगमगाता है। मुझे भी दिखता है कि धन पा भी लूंगा, तो क्या होगा? मौत तो आएगी। अगर मौत को भी रिश्वत दी जा सके, तो धन काम पड़ सकता है। लेकिन मौत अब तक रिश्वत लेती देखी नहीं गई। तो मौत से बच नहीं सकूँगा, तो फिर क्या करूं? भगवान के लिए दौडूं। मगर दौड़ जारी रहेगी। विषय बदल जाएगा, दौड़ जारी रहेगी। लक्ष्य बदल जाएगा, वासना जारी रहेगी। ___लाओत्से जैसे लोग कहते हैं, दौड़ो ही मत। यह नहीं कहते कि संसार फिजूल है, इसलिए मत दौड़ो; और परमात्मा सार्थक है, इसलिए दौड़ो। ये तो स्वार्थ की ही बातें हैं। यह तो स्वार्थपरता ही हुई। इसका तो मतलब यह हुआ कि जो ज्यादा चालाक हैं, वे परमात्मा को पाने की कोशिश करते हैं; जो कम चालाक हैं, वे धन को पाने की कोशिश करते हैं। इसका मतलब तो साफ है कि जो गणित में कुशल हैं, होशियार हैं, वे इन छोटी बातों में नहीं पड़ते। जो बच्चे हैं, नासमझ हैं, वे छोटी बातों में पड़ जाते हैं। क्या मकान बना रहे हो जमीन पर, मोक्ष में बनाओ। वहां टिकेगा चट्टान पर। और यहां रेत है। तो जो रेत में बनाते हैं, वे नासमझ हैं। और जो चट्टानों पर बनाते हैं, वे समझदार हैं। तब तो यह सारा का सारा मामला कम चालाक और ज्यादा चालाक लोगों का हुआ। इसलिए लाओत्से बहुत जोर देकर कहता है, चालाकी छोड़ो, स्वार्थपरता छोड़ो, वासनाओं को क्षीण करो। आध्यात्मिक अर्थ में, अगर वासना रह गई है किसी भी दिशा में, तो भटकन जारी रहेगी। ठहर जाओ, दौड़ो ही मत। वासना का अर्थ क्या है? वासना का अर्थ है : दौड़ना, भागना। वासना का अर्थ है : पाने को कहीं कुछ दूर है। मैं यहां हूं, पाने को कुछ वहां है; दोनों के बीच फासला है। उस फासले को पूरा करने का नाम वासना है। मैं यहां हूं, आप वहां हैं; मुझे आपको पाना है; मेरे आपके बीच डिस्टेंस है, फासला है। इस फासले को पूरा करना है। कब कर पाऊंगा, पता नहीं। लेकिन मन में अभी कर लेता हूं। मन में अभी कर लेता हूं। महल कब बनेगा, पता नहीं; मन में 368|

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