Book Title: Swadeshi Chikitsa Part 01 Dincharya Rutucharya ke Aadhar Par
Author(s): Rajiv Dikshit
Publisher: Swadeshi Prakashan

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Page 28
________________ तिक्तकषायः कटुको बलिनोडत्र रसाः क्रमात तस्मादादानमाग्नेयम् अर्थ : उत्तरायण में बल की कमी होती है। क्योंकि उत्तरायण में सूर्य के अपने मार्ग के स्वभाव से अत्यन्त तीक्ष्ण होता है। उत्तरायण में वायु भी अत्यधिक रूक्ष होती है। उत्तरायण में सूर्य और वायु मिलकर पृथ्वी की सौम्यता खत्म कर देते हैं । क्रमशः शिशिर में तिक्त बसन्त में कषाय और ग्रीष्म में कटुरस बलवान होत हैं। अतः इस आग्नेय काल का नाम आदान है। विश्लेषण : स्वभाव से सूर्य का गमन मार्ग मकर, कुम्भ और मीन राशि पर है। जब इन राशियों पर सूर्य चलता है तो वह अत्यन्त ही गर्म हो जाता है । जिससे वायु भी गर्म और रूक्ष हो जाती है। ये गर्म और रूक्ष वायु पृथ्वी के सौम्य और शीतल गुणों का शोषण करते हुये शरीर के सौम्य गुणों का भी शोषण करती है। इससे शरीर दुर्बल हो जाता है। इसलिये इस काल को आदान काल भी कहा जाता है । ऋतवो दज्ञिरगायनम् ।। वर्षादयो विसर्गश्च यद्बलं विसृजत्ययम् । सौम्यत्वादत्र सोमो हि बलवान् हीयते रविः ।। अर्थ : वर्षा शरद, हेमन्त इन तीन ऋतुओं का नाम दक्षिणायन है । यह काल प्राणियों में बल को देता है इसलिये इसका अन्वर्थ नाम विसर्ग काल भी है । यह काल सौम्य है, अतः सोम (चन्द्रमा) बलवान होता है और सूर्य दुर्बल होता है अर्थात् सूर्य दक्षिण की ओर गमन करने लगता है। तो मार्ग स्वभाव से यह क्षीण बल होता है फलस्वरूप चन्द्रमा बलवान हो जाता है जिससे बल की वृद्धि होती है । मेघवृश्टयनिलैः शीतैः शान्ततापे महीतले । स्निग्धाश्चेहाम्ललवणमधुरा बलिनो रसाः ।। अर्थ : ग्रीष्म काल में पृथ्वी अधिक उष्ण होती है जब और वर्षा से पृथ्वी का ताप और वायु शीतल हो जाता है तो स्निग्ध अम्ल लवण मधुर रस बलवान हो जाते है ! विश्लेषण : पृथ्वी के शीतल हो जाने पर अम्ल लवण मधुर रस क्रमशः वर्षा शरद और हेमन्त में और बलवान होते है। सौम्य रस बल को बढ़ाने वाला होता है और सूर्य के दुर्बल होने से शरीर के सौम्याशं का शोषण भी नही होता है क्रमशः ये स्निग्ध रस बल को बढ़ाने वाले होते हैं । शीतेऽग्न्यं वृष्टिधर्मेऽल्पं बलं मध्यं तु शेषयोः । 27

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