Book Title: Swadeshi Chikitsa Part 01 Dincharya Rutucharya ke Aadhar Par
Author(s): Rajiv Dikshit
Publisher: Swadeshi Prakashan

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Page 120
________________ गीले लिए जायें अर्थात पके न हो तो इनका सेवन करने पर रस में अम्लः पित्त .. और कफ उत्पादक गुरू, वीर्य में उष्ण, वातनाशक और मल निःसारक होते हैं। कोल, (छोटी बेर) कर्कन्धु (बड़ी बेर) लकुच (बड़हर) आभात (आमाड़ा) आरूक ... (आडू) ऐरावत (नारग) दन्तशठ (बिजौरा नीबू) तूद (सहतूत) मृगलिण्डिका (इमली) और करमर्द ये पके हुये शुष्क, पित्त को अधिक रूप में नहीं बढ़ाते हैं। पके और शुष्क इमली और छोटी बेर अग्निदीपक भेदक, तृष्णा, श्रम, . क्लम नाशक, कफ को काटकर बाहर करने वाले लघु एवं कफ पित्त के लिए पथ्य होते है फलों में बड़हर सबसे हीन और त्रिदोष प्रकोपक होता है। विश्लेषण : यहाँ अम्ल फलों का गुण बताया गया है किन्तु उनके अपक्व फल और शुष्क फल का गुण भिन्न-भिन्न बताया है मुनक्का अपक्व खट्टा होता है किन्तु पकने पर वह मधुर विपाक और रस में भी मधुर होता है इसलिए पित्त और कफ । वर्धक नहीं होता है फालसा अपक्व अधिक अम्ल होता है और पित्त को उत्पन्न करता है। पकने पर मधुर एवं वातपित शामक होता है। इस प्रकार जो फल-पकने पर भी अपनी अम्लता को नहीं छोड़ता है वह पित को उत्पन्न करता है किन्तु मुनक्का और करौदा अम्ल होते हुए अधिक पित्त को उत्पन्न नहीं करता। लकुच सभी अवस्था में हानिकर ही होता है इसलिए फलों में सबसे निकुष्ट बड़हर को माना है। हिमानलोणादुर्वातव्याललालाऽऽदिदूषितम् ।। जन्तुजुष्टं जले मग्नमभूमिजमनार्तवम्।। अन्यधान्ययुतं होनवीर्य जीर्णतयाऽति च।। धान्यं त्यजेतथा शाकं रूक्षसिद्धमकोमलम् । असज्जातरसं तद्वचछष्कं चान्यत्र मूलकात् ।। प्रायेण फलमप्येवं तथाऽऽमं बिल्ववर्जितम्। अर्थ : दूषित अभक्ष्य फल औरर शाक-जो फल या धान्य हिम (बर्फ) के लंगने से विकृत हो गये हैं, तीव्र वायु के लगने से, तीव्र सूर्य किरण से, अग्नि के ताप से, दूषित वायु से, व्याल (सांप) आदि विषैले जीव के लाला से दूषित हो गये हो या सड़े हुए जीव जन्तुओं से दूषित हो गये हों, मल मूत्र के लगने से दूषित हों तथा कृमि लग जाने से जल में डूबे रहने से दूषित है। गन्दी भूमि में उत्पन्न हों (अर्थात जिस धान्य के लिए जो भूमि उचित न हो उस भूमि में उत्पन्न हो एवं प्राकृतिक उत्पन्न होने के समय से भिन्न ऋतुयों में उत्पन्न हों अन्य विजातीय धान्य से युक्त हों जिनका हीन वीर्य हो अधिक पुराना हो ऐसे धान्यों का सेवन नहीं करना चाहिए। कोई भी शाक बिना तेल या घृत के बनाये हो अर्थात रूक्ष सिद्ध हों या अधिक कठोर रूढ़ हो गये हो उनका सेवन, तथा जिन - 119

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