Book Title: Swadeshi Chikitsa Part 01 Dincharya Rutucharya ke Aadhar Par
Author(s): Rajiv Dikshit
Publisher: Swadeshi Prakashan

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Page 118
________________ अर्थ : भातुलुगं नीबू के फल का गणु-फल का छिलका रस में तिक्त और . कटु तथा स्निग्ध और वातनाशक होता है। फल का गुद्दा बृहणं रस में मधुर वात पित्तशामक और गुरू होता है, फल का केशर (यवा) यह लघु कास श्वास हिक्का मदात्यय मुखशोष वात और कफ जन्य रोग विवन्ध बमन अरोचक गुल्म उदर रोग अर्श उदर शूल और मन्दाग्नि रोग को नष्ट करता है। विश्लेषण : आयुर्वेद में मातुलुगं (विजौरा) नीबू का विशेष गुण बताया गया है और अम्ल होते हुए प्रत्येक कास में लाभकारी होता है प्रयोग में रस का ही व्यवहार होता है पर छिलका गुद्दा और केशर, जटा के पृथक पृथक गुणों का वर्णन यहां किया गया है वर्तमान समय में कागजी नीबू का प्रचार इतना हो गया है कि आजकल विजौरा नींबू प्राप्त नहीं होता और प्रत्येक कार्य में कागजी नीबू का ही प्रयोग होता है जो मातुलुगं नीबू के समान ही होता है पर प्लीहा आदि रोगों में इसका प्रभाव दृष्टि गोचर नहीं होता इसी प्रकार मोतीया बिन्द में केवल बीजौरे नींबू के रस में सात भावना देकर बनाये हुए काले सुरमा का अंजन लाभ करता है और इनसे मोतीया बिन्द प्रारम्भिक अवस्था में रूक जाता है किन्तु कागजी नींबू के रस में यह बनाया जाय तो लाभ नहीं करता यह अनुभव सिद्ध हैं। भल्लातकस्य त्वगंमांसं बृंहणं स्वादु शीतलम् । तदस्थ्यग्निसमं मेध्यं कफवातहरं परम्।। मर्थ : भिलावे का गुण-भिलावे का छिलका और मांस (गुदा) यह दोनों बृंहण वादु एवं शीतल होते हैं तथा भिलावे की गुठली अग्नि के समान तीक्ष्ण एवं फफोले उत्पन्न करने वाला होता है। मेधावर्धक कफ और वायु को दूर करने । उतम होता है। वेश्लेषण : भिलावा एक फल है जो गोलेकार हरे वर्ण का होता है फल के कने पर उसके गुर्दे खाये जाते हैं। वह बलवध्रक मधुर एवं अधिक शीतल ता है यद्यपि उसके छिलके प्रयोग में नहीं लाये जाते है पर वह भी बलवट क है। फल के भीतर गुठली होती है जो कुछ कृष्ण एव रक्तवर्ण का होता । इसके भीतर तेल होता है। यह अधिक उष्ण होता है यदि तेल का स्पर्श चा से हो जाय तो अधिक जलन के साथ-साथ फुन्सियाँ हो जाती है नससे भयानक खुजली होती है कभी-कभी फफोले पड़ जाते हैं। गरी के ल लगाने से उपद्रवो की शान्ति होती है गुठली के भीतरी भाग में मज्जा ती है। जो वृष्ण और बलवर्धक होता है। एक किलो एरण्ड तैल में 10 लावा पकाकर लगाने से सभी प्रकार के वात रोग में विशेष लाभ होता है। * 117

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