Book Title: Swadeshi Chikitsa Part 01 Dincharya Rutucharya ke Aadhar Par
Author(s): Rajiv Dikshit
Publisher: Swadeshi Prakashan

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Page 125
________________ अर्थ : बहेड़े का गुण-वह विपाक मे कटु, वीर्य में शीतल, केश के लिए लाभ कर और हरीतकी आँवले के कुछ गुणों से समान होती है। विश्लेषण : सामान्यतः हरे आवला और बहेड़ा यह तिनों गुण में एक समान होते हैं। किन्तु इनके प्रयोग में भिन्नता होती है बहेड़े का नाम अक्ष है। अक्ष का तात्पर्य कर्ष (1 तो 0) से है इसका नाम कर्ष फल भी है यह 1 तो 0 की मात्रा में प्रयुक्त होती है हरीत की दो तो 0 की मात्रा में प्रयुक्त होती है जैसा बताया है। ___नवास्निग्धा घनावृता गुर्वो क्षिप्ता तथाऽम्यसि। निमज्जैत या प्रशस्तत्वात् गुण कृत् सा प्रकीर्तिताः।। नवादि गुण युक्तत्वं तथैकत्र द्विकर्षता।। हरीतकी फले यत्र तेनैतत् रेष्ठमुच्यते।। आवले के प्रयोग की यद्यपि मात्रा निर्दिष्ट नहीं है। तथापि त्रिफला के रूप में जब इन तीनों का एकत्र प्रयोग होता है। तो अभयैका प्रदातव्या द्वाववतु विभीतकी। धात्री फलं च चत्वारिं, त्रिफलेयं प्रकीर्तिताः।। इस वचन से चार आँवला, दो बहेड़ा और एक हरीतकी अलग-अलग मात्रा मानी गयी है। सुश्रुत ने बहेड़े को स्वादु पाकी एवं वीज को उष्ण माना है। यथा भेदनं लघु रूक्षोष्णं वैस्वर्य कृमि नाशनम्। चक्षुष्यं स्वादु पाक्यक्षं कषायं कफ पित्त जित् ।। अर्थ : इस प्रकार गुणों में भिन्नता देखकर कुछ विद्वान मूल पाठ में "पाके हिमं" के स्थान पर पाके उष्णं ऐसा पाठ मानते हैं। और बहेड़े को उष्ण वीर्य मानते हैं। बहेड़े का प्रयोग विशेष रूप से कास व स्वर भेद में होता है। इसमें कफ की प्रधानता होती है। उष्ण गुण से बहेड़ा कफ को दूर कर कास और स्वर भेद को ठीक करता है। यही बात सोचकर लोलिम्बराज ने रावणस्य सुतोहन्यात् मुख वारिज धारणात् । श्वसनं कसनं चैव हिक्कां चऽपि विशेषतः।। यहाँ रावण सुत से अक्षय कुमार का पर्याय अक्ष बहेड़ा किया गया है। इयं रसायनवरा त्रिफलाऽक्यामयापहा। रोपणी त्वग्गादक्लेदमेदोमेहकफाजित् ।। अर्थ : त्रिफला का गुण-हरे बहेड़ा आँवला इन तीनों द्रव्यों को एक दो चार संख्या में अथवा तीनों का चूर्ण अलग बनाकर समान मात्रा में लेने का नाम त्रिफला है यह 124 .

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