Book Title: Swadeshi Chikitsa Part 01 Dincharya Rutucharya ke Aadhar Par
Author(s): Rajiv Dikshit
Publisher: Swadeshi Prakashan

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Page 51
________________ विरेचन के द्वारा उसे बाहर निकाल दिया जाय तो मुलभूत दोष के दूर हो जाने पर पुनः दोष का प्रकोप या तत् जन्य रोग नहीं हो पाते हैं। यथाक्रमं यथायोगमत ऊर्ध्व प्रयोजयेत्। रसायनानि सिद्धानि वृष्ययोगांश्च कालवित्।। . . . अर्थ : शोधन के बाद सेवनीय औषध-देश, काल, वल, शरीर, आहार, सात्म्य सत्व, प्रकृति, आदि का समुचित ज्ञान रखने वाला वैद्य संशोधन के बाद यथाक्रम और यथा योग्य सिद्ध रसायन और वृष्य योगों का प्रयोग करें। विश्लेषण : तापर्य यह है कि शरीर के शुद्ध होने पर औषधियाँ अपने गुणों को भलीभाँति शरीर में प्रविष्ट करती हैं। जिस प्रकार स्वच्छ वस्त्र में कोई भी रंग लगाया जाय तो ठीक रूप में रंग जाता है वही रंग यदि गन्दे कपड़ों में लगाया जाय तो ठीक रूप में नहीं लगता है, उसी प्रकार अशुद्ध शरीर में रसायन और बाजीकरण का प्रयोग लाभकर नहीं होता है। इसलिये वमन विरेचन द्वारा शरीर की शुद्धि हो जाने पर रसायन वाजीकरण का प्रयोग बताया गया है, यह विधि भी स्वस्थ व्यक्तियों के लिए ही है। जैसा कि चरक चि. प्रथम अध्याय में बताया है कि "स्वस्थस्योर्जस्करं यतु तद् वृष्यं तद् रसायनम्" मेषजक्षपिते पथ्यमाहारैबृहिणं क्रमात्। . शालिषष्टिकगोधूममुदगमांसघृतादिभिः।। हृद्यदीपनभैषज्यसंयोगाद रूचिपक्तिदैः। साभ्यड्रोद्वर्तनस्नाननिरूहस्नैहवस्तिभिः।। अर्थ : शोधन से कृशित व्यक्तियों के लिए आहार-भेषज (औषधि) सेवन से शरीर के क्षीण होने पर क्रम से आहारों द्वारा वृहिणं पथ्य का प्रयोग करना चाहिये। आहारों में शालि चावल साठी का चावल, गेहूं, मूंग, घृत आदि आहार और हृदय के लिए हितकर अग्नि संदीपक (मोंठ अदरल, पीपल, मरिच अनार सैन्धव नमक आदि) औषधि द्रव्यों के संयोग से बनाया हुआ आहार जो रूचि उत्पन्न करने में एवं पाचन संपादान में समर्थ हो ऐसे आहार का क्रमशः प्रयोग करना चाहिए। और तैलों का अभ्यगं, उबटन, स्नथान, निरूह, एवं स्नेह वस्ति का प्रयोग विहार के रूप में करना चाहिए। अर्थात् इस बताये हुए आहार-विहार के सेवन से क्रमशः वृंहण करना पथ्य होता है। तथा स लभते भार्म सर्वपावकपाटवम्। । । धीवर्णेन्द्रियवैमल्यं वृषतां दैर्ध्यमायुषः।। अर्थ : सशोधन और वृंहण प्रयोग से लाभ-इस प्रकार स्वस्थ व्यक्ति यथासमय शोध न, के बाद रसायन तथा दृष्य द्रव्यों का सेवन करता है तो उसे सुन्दर स्वास्थ की प्राप्ति होती है और सभी प्रकार के अग्नि यथा पंच महाभूत की 5 धातुओं के साथ -50

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