Book Title: Swadeshi Chikitsa Part 01 Dincharya Rutucharya ke Aadhar Par
Author(s): Rajiv Dikshit
Publisher: Swadeshi Prakashan

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Page 104
________________ आलुकानि च सर्वाणी तथा सूप्यानि लक्ष्मणम् । स्वादु रूक्षं सलवणं वातश्लेष्मकरं गुरू। ... शीतलं सृष्टविण्मूत्रं प्रायों विष्टभ्य जीर्यति।। स्विन्नं निष्पीडितरसं स्नेहाढय नातिदोषलम् । अर्थ : कलम्ब, नलिका, मर्षा, कुटीजर, तुकुम्बक चिल्ली, लट्वाक, लोणिका, कुरूटुक, गवेधुक जीवन्ती, झुंझू, एडगज, जवासा, सुवर्चल ये सभी शाक तथा सुप्य, दाल के काम में आने वाले मूंग, उरद, अरहर आदि तथा मुलेठी रस मे मधुर, रूक्ष, नमकीन वात कफ कारक, गुरू, वीर्य में शीतल मलमूत्र निःसारक और प्रायः विष्टम्भ करने के बाद पचते हैं। यदि इन पत्रशाकों को उबाल कर रस निकाल लिया जाय, घी अथवा तेल में भुजकर खाया जाय तो अधिक दोष कारक नहीं होते है। विश्लेषण : यहाँ सामान्यतः पत्र शाक के गुण का निर्देश किया गया है ये शाक वर्तमान समय में इन्हीं नाम से प्राप्त नहीं होते। किन्तु कुछ सागों का नाम निर्देश इस प्रकार किया जा सकता है। कलम्ब–(करेमुआ) नालिका (नाड़ीसाक) मार्ष (मरषा) कुटीचजर (लालमुली) कुतुम्बक (गूमा) चिली यव के खेत में उत्पन्न होने वाला वन वथुआ, लट्वाक (गुग्गुलु की पत्ती) लौकी नोनी का साक करूटक (सुलवारी) गवेधुक (मक्का पत्ती) जीवन्ती (लालमर्षा) झुंझू (सनई के पुष्प) एडगज (चकवड़ की पत्ती) यव-साक (वथुआ) सुवर्चल (हुरहुर की पत्ती) और आलू इनमें एक आलू कन्द साक है। शेष सभी पत्ती के शाक समान गुण हैं शिम्बी धान्य छीमी वाले दाल के लिए प्रयुक्त होने वाले धान्य का गुणका निर्देश किया गया है। यदि इन्हीं पत्रसाकों को उबाल कर उसका रस निचोड़ कर स्नेह में भंजकर खाया जाय तो यह अल्प मात्रा में दोष को बढ़ाने वाले होते है। सामान्यतः "सवेषु शाकेषु वसन्ति रोगा, ते हेतवो देह विनाशनाय। तस्मात् वुधः शाकविवर्जनन्तु, कुर्यातथाम्लेषु स एव दोषः।।" अर्थ : इन सभी शाकों को रोग कारक बताया गया है। ये शाक 6 प्रकार के होते है। जैसाकि : . .. .. "पत्रं, पुष्पं, फलं, नालं, कन्द्र संस्वेदजंत था। .. . शाकंषड्विधमुद्दिष्टं गुरू विद्याद् यथोत्तरम्" बताया गया है। लघुपत्रा तु या चिल्ली सा वास्तुकसमा मता।। तोरीवरूणं स्वादु सतिक्तं कफवातजित्। वर्षाभ्वौ कालशाकं च सक्षारं कटुतिक्तकम्। दीपनं भेदनं हन्ति गरशोफकफानिलान् । 103


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