Book Title: Swadeshi Chikitsa Part 01 Dincharya Rutucharya ke Aadhar Par
Author(s): Rajiv Dikshit
Publisher: Swadeshi Prakashan

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Page 115
________________ प्रियाल (चिरौजी) का गुण - यह वीर्य में अनुष्प अर्थात् वीर्य में शीत होती है को करता दूर चिरौंजी की मज्जा रस में मधुर वृष्य और पित्त और वायु है । बेर की मज्जा का गुण - बेर की मज्जा चिरौंजी के समान होती है विशेष कर तृष्णा वमन और कास रोग को दूर करता है। विश्लेषण : यहाँ ताल आदि फलों का गुण बताया गया है सुश्रुत ने ताल के फल का पित्त शामक होना बताया है इस विरूद्ध वचन से यहाँ कच्चे ताल फल का गुण और सुश्रुत का निर्देश पके हुए ताल फल के गुण से है चरक ने ताल सस्यानि सिद्धानि नारि केर फलानि च । वृहणं स्निग्ध शीतानि वल्यानि मधुराणि च ।। सिद्धानि का व्याख्या करते हुए वाष्य चन्द्र ने पक्वानि यह व्याख्या किया है मधुर स्निग्ध शीत होने से वाः पित्त शामक कफ वर्धक पका हुआ फल होता है। इन वचनों से कच्चे फल का गुण पित्त वर्द्धक माना जाता है। , यहाँ वातामादि से बादाम, पिस्ता, चिलगोजा आदि के मज्जा का गुण निर्देश समझना चाहिए ! पक्कं सुदुर्जरं बिल्वं दोषलं पूतिमारूतम् । दीपनं कफवातघ्नं बालं ग्राह्युमयं च तत् । बेल- पका हुआ बेल पचने में भारी वात पित्त कफ वर्द्धक और अपान वायु को दुर्गन्ध के साथ निकलता है। कच्चा बेल अग्नि दीपक कफ और वात निःशक होता है तथा कच्च और पका दोनों ग्राही अर्थात् मल मूत्र को रोकने वाले होते हैं। विश्लेषण : सामान्यतः सभी फल पकने पर अधिक गुण करते हैं किन्तु बेल का फल कच्चा ही गुणकारक होता है बताया भी है फलेषु परिपक्वं यत् गुणवत्तदुदाहतम् । विल्वादन्यत्र विज्ञेयमामं तद्धि गुणाधिकम् ।। अर्थ : प्रायः कच्चे बेल का आग में पकाकर खान का विधान है प्रवाहिक में इसका प्रयोग अधिक होता है इसी दृष्टि से प्रवाहिका रोग में बेल के मुरब का प्रयोग किया जाता है । सुश्रुत ने कच्चे वेल का कटु, तिक्त, कषाय और उषण माना है। प हुए बेल को मधुरानुरस गुण विदाही विष्ठम्भि विशेष माना है। गर्मी के दिनों में बेल के शर्बत पीने का विशेष विधान है मधुर वि मधुर शर्करा से मिलकर शीत वीर्य हो जाता है अतः वह दाह प्रशामक हो 114

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