Book Title: Swadeshi Chikitsa Part 01 Dincharya Rutucharya ke Aadhar Par
Author(s): Rajiv Dikshit
Publisher: Swadeshi Prakashan

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Page 105
________________ अर्थ : चिल्ली शाक का गुण :- छोटी-छोटी पत्ती वालो जो चिल्ली शाट होता है वह वथुये के समान गुणकारी होती है। - तर्कारी (अरनी) वरूण (वरना की पत्ती) यह रस में मधुर ईषद् तित्र और वात तथा कफ को दूर करने वाले होते है। वर्षाभू (रक्त, और श्वे पुनर्नवा) गदह पुरना और काल शाक, (कालिका शाक) यह किंचित् क्षार, रस में कटु, तिक्त, अग्निदीपक, मलभेदक तथा कृत्रिमविष शोथ, कफ और वा विकार को नष्ट करने वाले होते हैं। दीपनाः कफवातघ्नाश्चिरबिल्वागराः सराः। शतावर्यगंकुरास्तिक्तवृष्या दोषत्रयापहाः। रूक्षो वंशकरीरस्तु विदाही वातपित्तलः।। पतूरो दीपनस्तिक्तः प्लीहार्शःकफवातजित्। कुमिकासकफोत्क्लेदान् कासमर्दो जयेत्सरः।। रूक्षोष्णमम्लं कौसुम्म गुरू पितकरं सरम्। गुरूष्णं सार्षपं बद्धविण्मूत्रं सर्वदोषकृत् ।। अर्थ : चिरविल्ब (करन्ज का अंकुर का अग्रभाग) का शाक अग्नि दीपव कफवातनाशक तथा दस्तावर होता है। शतावरी का अंकुर का शाक रस तिक्त शुक्रकारक और त्रिदोष शामक है। - वाँस के कोपर का शाक रूक्ष, दाह कारक, वात और पित्त वर्धक है पतूर (मछेछी) का शाक अग्नि दीपक रस में तिक्त प्लीहा, अश्य, कफ और वा को नष्ट करने वाला है। कासमर्द (कसौजी) का शाक, कृमि, कास, कफ औ उत्क्ले द (उभड़े हुये दोषों के द्वारा मुख में बार-बार पानी का आना) दूर कर है और मल शोधक है। - कौसुम्भ (वरे) का शाक रूक्ष वीर्य में उष्ण रस में अम्ल गुर पित्तवर्धक और मल निःसारक है। सार्षप (सरसों) का शाक गुरू, उष मलमूत्र के वेग को रोकने वाला और त्रिदोष का प्रकोपक है। विश्लेषण : यहाँ वृक्षों के अंकुर और हीनगुण वाले कुछ शाकों का वर्ण किया गया है। इसमें वांस के कोपल के गुण में वात पित वर्धक गुण बता गये हैं। किन्तु सुश्रुत ने इसे कफ वर्धक माना है। प्रायः वात पित्तवर्धक अँ कफ का नाशक इसका गुण सभी आचार्यों ने माना है। अष्टागंसंग्रहमें, वातपित्तकरा रूक्षा कटुपाका कफापहा। . माधवकार ने भी 'वातपित्तकरा, रूक्षा कटुकारसपाकतः।। 'वेणों करीरा भलेष्मघ्ना सकषायाविदाहिनः"। 1.04

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