Book Title: Swadeshi Chikitsa Part 01 Dincharya Rutucharya ke Aadhar Par
Author(s): Rajiv Dikshit
Publisher: Swadeshi Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 64
________________ विवस्साबालवत्सायाः पयोदोषलमीरितम् ।। बष्कयिण्यास्त्रिदोषघ्नं तर्पणं वलकृत्ययः। जांगलानप शैलेशु चरन्तीनां यथात्तरम् ।। पयोगुरूतरं स्नेहो यथाहारं प्रवर्तते। ... स्वल्पान्न भक्षणाज्जातं क्षीरं गुरू कफ प्रदम् ।। तत्तु वर्ण्य परं वृष्यं स्वस्थानां गुणदायकम्। पलालतृण कार्पास वीजजातंगुणैहितम् ।। (भाव प्रकाश) तरूणीनां गवां दुग्धं मधुरं च रसायनम्। त्रिदोष शमनं चैव वृद्धाया दुर्बलं मतम् ।। सगर्भायाःसमुद्विश्टं त्रिमासोवं च पित्तलम् । क्षारं च मधुरं चैव मतं वैशोषकारकम्।। प्रथमे च प्रसूतायाः निःसारं गुणहनिकम्। नूत्न प्रसूतगोदुग्धं रूक्षदाहकर मतम् ।। रक्तदोषस्य जनकं पित्तलं च मतं बुधैः। चिर प्रसूता दुग्धं तु मधुरं दाहक पटू।। (निघण्टुरत्नाकर) __ शस्तंबत्सैकवर्णाया धवली कृष्णयोरपि.।। इक्ष्वादा माषपर्णादा उर्ध्व श्रृणांचय भवेत।। तासां गवां हितं क्षीरं श्रृतं वा श्रुतं मेंव वा। गव्यं प्रत्युषसि क्षीरं गुरू विष्टम्मि दुर्जरम्। तस्मा दभ्युदिते सूर्ये यामं यमार्धमेव वा।। समुत्तार्य तते ग्राह्य तत्पय्यं दीपनंलघु। हितमत्यग्न्यनिद्रेभ्यो गरीयो माहिषं हिमम्।। अर्थ : भैस के दूग्ध का गुण:-भैंस का दूध जिन व्यक्तियों की अग्नि अधिक तीव्र अर्थात् भस्मक रोग हो गया हो और जिन्हें निद्रा न आती हो उनके लिए लाभकर है। गौ के दूधकी अपेक्षा अधिक गुरू और शीतल है। विश्लेषण : गौ की अपेक्षा भैस का दूध अधिक मधुर अग्निनाशक निद्रा जनक और अधिक स्निग्ध होता है इसलिए यह अधिक बल वर्धक होता है। गौ दुग्ध की अपेक्षा भैंस के दूध से घी अधिक निकलता है। भोजन में इसी का प्रयोग अधिक होता है। सुश्रुत ने इसका गुण लिखते हुये- . महाभिष्यन्दिमधुरं माहिषंवह्निनाशनम्।। निद्राकरं शीततरं गव्यात् स्निग्धतर्रगुरू। बताया है। . किन्तु चरक ने इसे स्नेह में कम बताया है यथा- .. महीषाणां गुरुतरं गव्याच्छीततरं पयः। स्नेहादून मनिद्राणां मत्यन्निनांहित च न्त। 63

Loading...

Page Navigation
1 ... 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130