Book Title: Swadeshi Chikitsa Part 01 Dincharya Rutucharya ke Aadhar Par
Author(s): Rajiv Dikshit
Publisher: Swadeshi Prakashan

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Page 80
________________ लघु पितास्त्रकृत् कोठकुष्ठाहॊणजन्तुजित्।। आक्षं स्वादु हिमं केश्यं गुरू पितानिलापहम। नात्युश्णं निम्बज तिक्त कृमिकुष्ठकफप्रणुत् । उमाकुसुम्भजं चोष्णं त्वग्दोषकफपितकृत् । अर्थ : सरसों के तेल का गुण-सरसों का तेल रस में कटु वीर्य में उष्ण, तीक्ष्ण कफ शुक्र और वायु को नष्ट करने वाला होता है। लघु, रक्तपित रोगकारक, कोठ, कुष्ठ, अर्श, व्रण और कृमि रोग को नष्ट करता है। बहेड़े के तेल का गुण-बहेड़े का तेल रस में स्वादु वीर्य में शीत, केश के लिए हितकारी गुरू पित एवं वायु को दूर करने वाला होता है। नीम के तेल का गुण-नीम के बीज का तेल अधिक उष्ण नहीं होता है अर्थात् कुछ उष्ण होता है। रसमें तिक्त कृमि, कुष्ठ और कफ को दूर करता है। तिसी और वरे के तेल का गुण-तिसी और वर्रे का तेल वीर्य में उष्ण और त्वचा में दोष, कफ और पित्त को करने वाले होते है। विश्लेषण : विशेष व्यवहार में आने वाले कडु तेल का गुण लिखने के बाद चिकित्सा क्षेत्र में प्रायः प्रयुक्त होने वाले बहेड़े नीम के बीज, तिसी और बरे के तेल का गुण संक्षेप में बताया है। त्वचा के रोगों में जैसे दाद, खुजली में कड तेल का मालिश और अन्न प्रयोग में जैसे-साग, सब्जि में इसका अधिक प्रयोग होता है। अन्तः प्रयोग यदि अधिकरूप में किया जाय तो रक्त पित्त चकता कुष्ठ, अर्श एवं शरीर में व्रण उत्पन्न होते है। इससे विशेष कर शुक्र विकृत होता है, मालिश करने से कफ और वायु की शान्ति होती है। बहेड़े की मज्जा से तेल निकाला जाता है-केश जब अकाल में पकने लगते हैं तो इसके लगाने से काले हो जाते है। नीम का तेल सभी प्रकार के फोड़े फुन्सी में लाभकर होता है, प्रायः तिसी और बरे का तेल सबसे हीन गुण होता है इसक अन्तः प्रयोग से त्वचाओं में विकृति कफ और पित्तकी वृद्धि होती है। यदि त्वचा पर मालिश किया जाय तो त्वचाए विकृत और केश मलयुक्त हो जाते है। अतः इनका प्रयोग अल्प मात्रा में होता है। वसा मज्जा च वातघ्नौ बलापितकफप्रदौ।। मांसानुगस्वरूपौ च विद्यान्मेदोऽपि ताविव । अर्थ : वसा मज्जा और मेदा का गुण-वसा और मज्जा यह दोनों वातनाशक, शारीरिक बल, पित्त एवं कफ को बढ़ाने वाले होते हैं तथा जिस प्राणी के वसा और मज्जा लिया जाता है उस प्राणी के मांस का जो भी गुण होता है वे सभी गुण उस प्राणी के वसा और मज्जा में पाये जाते हैं और मेदा का भी गुण वसा, मज्जा और प्राणी के मांस के गुण के समान गुण होता है।

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