Book Title: Swadeshi Chikitsa Part 01 Dincharya Rutucharya ke Aadhar Par
Author(s): Rajiv Dikshit
Publisher: Swadeshi Prakashan

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Page 60
________________ सम शरीर और अन्त में पीने से स्थूल व्यक्ति होता है। अन्यत्र भी इसका समर्थन किया गया है. यथा भुक्तत्यादौ जलं पीतमग्निसादं कृशांगताम् । अन्ते करोति स्थूलत्व मूर्ध्व चामाशयात कफम्।। मध्यमध्यंगतां साम्यं धातुनां धाम्यं जरणंसुखम् । शीतं मदात्ययग्लानिमूर्छाच्छर्दिश्रमम्रमान् ।। तृष्णोष्रगदाहपित्तास्त्रविषाण्यम्ब नियच्छति। अर्थ : शीतल जलका, गुण:-मदात्यय, शरीर की ग्लानि मूर्छा, वमन, परिश्रम जन्य थकावट, भ्रम, प्यास की वृद्धि ओर शरीरकी उष्णता आहार-विहार जन्य दाह, रक्तपित्त और विष भक्षण जन्य विकार को शीतल जल दूर करता है। दीपनं पाचनं कण्ठयं लघूष्णवस्तिशोधनम्।। हिध्माध्मानानिलश्लेश्मसद्यःशुद्धिनवज्वरे । __कासामपीनसश्वासपार्श्वरूक्षु च शस्यते। अर्थ : उष्ण जलका गुण-उष्ण जल अग्निदीपक, पाचक, कण्ठ का शोधक अर्थात् स्वरभेद नाशक पचने में लघु, वस्ति का शोधक.और उष्ण होता है। हिक्का, आध्मान वात एवं कफ जन्य रोग, वमनादि कर्म से शरीर के सद्यः शुद्ध होने पर, नयेज्वर में तथा काम, अपक्व पीनस, श्वास पार्श्व पीड़ा में लाभकर है। विश्लेषण : उष्ण जल करने के बाद उसे शीतल कर पीना चाहिए। जल को उष्ण करने के लिए तीन विधियां प्रसिद्ध है। (1) चतुर्थाःश जल जलाकर (2) तीन भाग जल जलाकर, और (3) अर्धभाग जलाकर मह क्रम पित्त, कफ ओर वायु के लिए विहित है और इसे शीतल कर पीना चाहिए। यद्यपि पित्तज विकार में उष्ण जल का सर्वथा निषेध है उसका तात्पर्य यह है कि गरम-गरम जल उसमें नहीं देना चाहिए। जल पीने की विधियाँ भी तीन बतायी है। ताजा, शीतल जल का पाचन 6 घण्टे में, गरम कर शीतल होने पर पिया जाय तो तीन घण्टे गरम किया हुआ जल जब पीने योग्य हो जाय अर्थात् मुह न जले तो उसका 1 घन्टे में पाचन होता है। जैसा कि पीतं जलं जीर्यति याम युग्मात, यामैकमात्रं शृत शीतलंच। यामार्धमात्रं च शृतं कदुर्णपय पवाके त्रयएव काला।। अर्थ : वाराणसी में आठ करोरिया का जलल सन्तत जैसे भयानक ज्वर में देने का प्रचलन है। अर्थात् आठ कटोरी जल पकाते-पकाते जब एक कटोरी रह जाता है तो उसे पिलाया जाता है, विशेषकर इसमें एक लवण छोड़कर 59

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