Book Title: Swadeshi Chikitsa Part 01 Dincharya Rutucharya ke Aadhar Par
Author(s): Rajiv Dikshit
Publisher: Swadeshi Prakashan

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Page 34
________________ अर्थ : ग्रीष्म ऋतुचर्या- इस काल में सूर्य अत्यन्त तीक्ष्ण किरणों को भूमि भाग में फेकता है इस कारण प्रतिदिन कफ क्षीण होता है और वायु की वृद्धि होती है। इस लिये इस.काल में बलनाशक लवण कटु अम्ल रसों का सेवन, व्यायाम और धूप को सेवन नहीं करना चाहिये। भोजन में मधुररस प्रधान लघु, स्निग्ध , शीतल और द्रव आहार का सेवन करना चाहिए। विशेष कर शीतल जल से स्नान कर गुड़ मिले हुये सत्तू को धोलकर पीना चाहिये, इस काल में मद्य का सेवन नहीं करना चाहिये यदि इन नियमों का पालन न किया जाय तो शरीर में शीथ-शिथिलता, दाह और मोह (मूर्छा) रोग हो जाते हैं। कुन्देन्दुधवलं शालिमश्नीयाज्जागंलैः पलैः। पिबेद्रसं नातिघनं रसाला रागषाडवौ। पानकं पाचसारं वा नवमृद्राजने स्थितम्। मोचचोचदलैर्युक्तं साम्लं मृन्मयशुक्तिभिः। पाटलावासितं चाम्भः सकर्पूरं सुशीतलम्।। शशाङपकिररगान भक्ष्यान् रजन्यां भक्षयन् पिवेत् ।। ससितं माहिषं क्षीरं चन्द्रनक्षत्रशीतलम् ।। अर्थ : कुन्द के फूल और चन्द्रमा के समान शवेत और शीतल चावल का भात के साथ भोजन करे। तथा रसाला, पके आम के रस में गुड़ मिलाया हुआ राब, . मधुर, अम्ल, लवण रस से बनाया पानक, षांडवा, मधुर, अम्ल, लवण, कटु, कषाय रस बनाया हुआ पानक अथवा पत्रचसार पानक (मधु, खर्जूर, मुनक्का, फालसा, और जल मिलाया हुआ जो कि सत्तू या धान के लावा की सत्तू घी मिलाया हुआ) इन पानकों को नये मिट्टी के पात्र में रखकर मोच, (केला) का फल चोंच, (कच्ची गरी या केला), नारिकेल की पत्ती को जल में रखकर खट्टा अनार दाना से उसे अम्ल बनाकर मिट्टी की कसोरे से पिलाना चाहिये। गुलाब के फूल से सुवासित कर्पूर मिला हुआ शीतल जल मिट्टी के ढक्कन से पीना चाहिए। रात्री में सषांक किरण नामक भक्ष्य पदार्थ को कर्पूर मिलाकर बनाया हुआ बड़ा आदि खाते हुए चन्द्रमा के किरण में रखने से शीतल गुड़ मिलाकर दूध पीवे। अम्रङक्शमहाशालतालरूद्धोष्रगरश्मिषु । वनेशु माधवीश्लिष्टद्राक्षास्तबकशालिषु । सुगन्धिहिमपानीयसिच्यमानपटालिके। कायमाने चिते चूतप्रबालफललुम्बिभिः। कदलोदलकहारमृणालकमलोत्पलैः।

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