Book Title: Suyagadanga Sutra Part 02 Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh View full book textPage 6
________________ [5] चण्डालिया एवं मैंने गहन अवलोकन किया। फिर भी आगम ज्ञान की अल्पता एवं मुद्रण दोष से कहीं कोई त्रुटि रह गई हो, तो आगम मनीषी महानुभावों से निवेदन है कि हमें सूचित करने की कृपा कर अनुग्रहित करे। ___ इसकी प्रथम आवृत्ति के प्रकाशक में अर्थ सहयोगी आदरणीय दानवीर, समाज के भामाशाह दृढ़धर्मी, प्रियधर्मी सेठ वल्लभचन्दजी सा. डागा थे। खेद है कि आपश्री का देहावसान दिनांक २४-३-२००५ को हो गया। आपश्री की उदारता अनुकरणीय थी। आपके पांच पुत्र हैं श्रीमान् हुकमचन्दजी सा., इन्द्रचन्दजी सा., प्रसन्नचन्दजी सा., विमलचन्दजी सा., राजेन्द्रकुमारजी सा. है। सभी पुत्र रत्न धार्मिक संस्कारों से संस्कारित और अपने पूज्य पिताश्री के पदचिन्हों पर चलने वाले हैं। सभी की भावना है कि सेठ सा. द्वारा जो शुभ प्रवृत्तियाँ चालू थी वे सभी निरन्तर चालू रखी जाय। तदनुसार आगम प्रकाशन के आर्थिक सहयोग में भी आप सदैव तैयार रहते हैं। मेरे निवेदन पर आप सभी ने तुरन्त स्वीकृति प्रदान कर उदारता का परिचय दिया। इसके लिए समाज आपका आभारी है। - आपकी उदारता एवं धर्म भावना का संघ आदर करता है। आपने प्रस्तुत आगम पाठकों को अर्द्ध मूल्य में उपलब्ध कराया। उसके लिए संघ एवं पाठक वर्ग आपका आभारी है। ___ यद्यपि कागज और मुद्रण सामग्री के मूल्यों में निरन्तर वृद्धि हो रही है एवं इस पुस्तक के प्रकाशन में जो कागज काम में लिया गया है वह श्रेष्ठ उच्च क्वालिटी का मेपलिथो, बाईंडिंग पक्की तथा सेक्शन है बावजूद इसके डागा परिवार के आर्थिक सहयोग के कारण इसका अर्द्ध मूल्य मात्र २५ रुपया ही रखा गया है। जो अन्यत्र स्थान से प्रकाशित आगमों से अति अल्प है। सुज्ञ पाठक बंधु इस नूतन प्रकाशन का अधिक से अधिक लाभ उठावें। इसी शुभ भावना के साथ! ब्यावर (राज.) दिनांकः २८-७-२००५ संघ सेवक नेमीचन्द बांठिया अ. भा. सुधर्म जैन संस्कृति रक्षक संघ, जोधपुर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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