Book Title: Suyagadanga Sutra Part 02 Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh View full book textPage 4
________________ निवेदन .. स्थानकवासी जैन परम्परा के मान्य आगम साहित्य अंग, उपांग, मूल और छेद रूप चार भागों में वर्तमान में विशेष प्रसिद्ध है। इनमें अंग रूप आगम प्रभु महावीर का उपदेश है, जिसे गणधरों ने अंग साहित्य के रूप में रचना की है। शेष आगम साहित्य की रचना पूर्वधर आचार्य भगवन्तों की है। यद्यपि इनकी रचना पूर्वधर आचार्य भगवंतों की है पर विषय सामग्री एवं प्रामाणिकता आप्त वचनों के समतुल्य है। इसमें किसी प्रकार की शंका को अवकाश नहीं है। ___ अंग आगम साहित्य के क्रम में प्रथम स्थान आचारांग सूत्र का है, जिसमें साधु जीवन के आचार (आचरण) की विशद चर्चा की गई है। वैसे देखा जाय तो आध्यात्मिकता का मूल ही आचरण पर आधारित होता है। साधक का सम्यक् निर्मल आचरण ही उसको आध्यात्मिक क्षेत्र में आगे बढ़ाने में सहायक होता है। इस अपेक्षा से आचारांग सूत्र का अंग साहित्य में प्रथम स्थान होना सभी दृष्टि से उचित है। अंग साहित्य में दूसरा स्थान सूत्रकृताङ्ग सूत्र का है। जिसमें आचार के साथ विचार की मुख्यता है। यानी इसमें दार्शनिक विचारधाराओं को प्रमुखता से प्रतिपादित किया गया है। . इस सूत्र में प्रभु महावीर के समय भारत वर्ष में प्रचलित लगभग सभी दार्शनिक मान्यताओं को इसमें चर्चित किया, जिसमें कुछ का सम्बन्ध आचार से, तो कुछ का सम्बन्ध दर्शन से है। आगमकार ने पूर्व पक्ष (परमत का) का परिचय देकर बाद में उन्हें खण्डित कर स्वमत अपने सिद्धान्त की स्थापना की है। सूत्रकृताङ्ग सूत्र जैन परम्परा में दार्शनिक विषय को प्रतिपादित करने वाला एक विशिष्ट आगम है। इसमें नवदीक्षित श्रमणों को संयम में स्थिर रखने के लिए और विचार पक्ष को विशुद्ध बनाए रखने के लिए जैन सिद्धान्तों का विस्तृत वर्णन है। आधुनिक काल के अध्येता को जिस प्रभु महावीर के समय प्रचलित ३६३ मतों (क्रियावादी १८० अक्रियावादी ८४ अज्ञानवादी ६७ और विनयवादी ३२) को जानने की उत्सुकता हो, जैन और जैनत्तर दर्शन को समझने की दृष्टि हो, उनके लिए प्रस्तुत आगम में यथेष्ठ सामग्री उपलब्ध है। इसके अलावा इसमें जीव, अजीव, लोक, अलोक, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बंध, मोक्ष आदि का भी विशद विवेचन है। - सूत्रकृताङ्ग सूत्र के दो श्रुत स्कन्ध हैं। दोनों में ही प्रधान रूप से दार्शनिक विचार चर्चा है। प्रथम श्रुत स्कन्ध में सोलह अध्ययन हैं और दूसरे श्रुत स्कन्ध में सात अध्ययन हैं। प्रस्तुत दूसरे श्रुत स्कन्ध का प्रथम अध्ययन पुण्डरीक का है। इसमें एक सरोवर के पुण्डरीक कमल की उपमा देकर बताया गया कि विभिन्न मत वाले लोग राज्य के अधिपति राजा को प्राप्त करने का प्रयत्न Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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