Book Title: Stotra Chintamanistatha Prakrit Stotra Prakash
Author(s): Vijaypadmasuri
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha
View full book text
________________
२६८
श्री विजयपद्मसूरिविरचितः
निरीह सज्झाणविसिहगोयरं: भएम भावा पहुकुम्मलंछणं ॥२॥ अणुत्तरझाणविलद्धकेवलं ॥ विमोहभावणियदिण्णदेसणं ॥ परत्य संपाइयभव्वनिव्वुइं । णमेम भावा पउमावईसुयं ॥ ३ ॥
-
॥ नमिनाथ चैत्यवंदनम् ॥
॥ दोधकवृत्तम् ॥ उत्तममंगलगेहमुहज्जं । कोमलहत्थपओयमुहंगं ॥ लक्खण राइयपायभयंतं । झाअमणीलकयंकणमीसं ॥१॥ कामदवंबुपवाहसुहच्चं । नासियदुट्ठकसायसुहच्छि । मोहवियारण पच्चलसिक्खं । वंदम मोययमुत्तिणमीसं ॥२॥ केवलनाणपयासियतत्तं । तत्तपइडियसासणदीवं ॥ सिद्धिसणायण सत्थपसत्थं ॥ पूअम भद्दयतित्थणमीसं ॥३॥

Page Navigation
1 ... 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344