Book Title: Stotra Chintamanistatha Prakrit Stotra Prakash
Author(s): Vijaypadmasuri
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha
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२९६
श्री विजयपद्मसूरिविरचितः
भासिज्जमाण सद्दा-अहवा सिरिताडपनवण्णाली ॥ तं दव्वसुयं तेणं-पयत्यनाणं च भावसुयं ॥ ५० ॥ कारगकज्जसहावं-दुविहसुयं सम्मदिहिनीवाणं ॥ एयं सुयनाणावर-णखओवसमा समुभवए ॥ ५१ ॥ एगिदियाइसु तयं-तबिरहे घडइ णेव चउसण्णा ॥ अप्पटुज्झवसाओ-सण्णाऽऽहाराइअणुऊलो॥ ५२ ॥ एयासयाउ भणियं-एगिदियपमुहजीवसंदोहे ॥ सुयनाणंति कहते-कम्मग्गंथाइसत्थाई ।। ५३ ॥ इंदियमणसाहज्ज-मइसयनाणं परोक्खमिइ वुत्तं ॥ पञ्चक्खमवहिनाणं-मणपज्जवकेवलं तिष्णि ॥५४॥ तमवहिनाणं गइयं--जमप्पणिंदयमणाणवेक्खिययं ॥ रूवीणं विण्णाणं-वण्णाइसमण्णिया रूवी ॥ ५५ ॥ जाणिज्जइ मणभावे-जत्तो मणपज्जवं तयं वुत्तं ॥ दव्वमणं भावमणं-मणं दुहा तत्थ दव्यमणं ॥५६॥ आलंबणाउ जेसिं, वियारसेढी पयट्टए दुविहा ॥ मणपुग्गलाणि ताई-भावाउ वियारपरिणामा ॥ ५७॥ गहणं सकायजोगा-मणपरिणमणं मणस्स जोगेणं ॥ मणपज्जवा मुणेए-मणभावा चेव णो वज्झे ।।५८॥ अणुमाणेण घडाई-माणसपुग्गलगणे तयायारो ॥ पडए छउमत्थाणं-हवइ सया दव्वभावमणं ॥५९॥

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