Book Title: Stotra Chintamanistatha Prakrit Stotra Prakash
Author(s): Vijaypadmasuri
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha
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प्राकृतस्तोत्रप्रकाशः
३०९
उद्देसविही भणिओ-सामण्ण विही जहेव सिद्धथवे ॥ जोऽत्यऽण्णत्थवि णेओ-से साहग धीरभव्वेहि ॥६६॥ चारित्तपयत्थवणा-पयत्यतत्तं सया वियारेता ॥ चारित्तमया होजा-मज्झत्थनरा पमोयाओ ॥६७॥ सिरिसिद्धचक्कजंते-चरित्तमट्ठमपयं नमंताणं ॥ झाअंताण समसुहं-मंगलमयपुण्णवेरग्गं ॥ ६८ ॥ मणुयत्तं पुण्णेणं-नवपयसंसाहणा महापुण्णा ।। पाविजत्तिवियारा-चरणपयाराहणा सज्झा ॥६९॥ गुणरइरंगतरंगो-अमियविहाणायराइयपमुइओ ॥ रयणायरसिरिसंघो-नियगुणतुट्ठी लहेज सया ॥७०॥ चारित्तं साहुत्तं-सव्वविरइचरणसंजमपवजा ॥ एए महवय दिक्खा -चरणपएगठिया उइया ॥७१॥ चारित्तच्चणसाह-ज्जदाण वंदण णुमोय बहुमाणा ॥ अप्पियरिद्धिवियासो-माहद्धंसा धुवं होज्जा ॥७२॥ दाणंकनिहिंदुमिए-वरिसे गणिपुंडरीयमुत्तिदिणे ॥ सिरिसिद्धचक्कभत्ते-धम्मिजइणरायणयरम्म ॥७३॥ सिरिसिद्धचक्कसंग-चारित्तपयत्यवं विसालत्थं ॥ सुग्गहियणामधेओ-वयारि गुरुणेमिसूरीणं ॥७४॥

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