Book Title: Stotra Chintamanistatha Prakrit Stotra Prakash
Author(s): Vijaypadmasuri
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha
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प्राकृतस्तोत्रप्रकाशः
उत्तममुकज्झाणं- सेलेसी भावभावियं भव्वं ॥ अभितरतवमिट्ठे - तत्तं विष्णेयमेयस्स ॥ ८ ॥
संतोसमूलवरविहि- विष्णाणक्खंधकरणदम साहो | सग्गसुमाभयपण्णो-सिवफलतवपायवो जयए ॥९॥
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अहिया सण्णसिवपया - तित्थवई संतवंति तिव्वतवं ॥ भव्वा ! कइभवमुत्ती - जाणह तुब्भे न तं तत्थ ॥ १० ॥
हिहिं तुभेहिं - पट्टिव्वं धुवं माओ णो || कायव्वो संपत्तं - मणुयत्तं पुण्णपुण्णेहिं ॥ ११ ॥ दुविहदयाकरणतवो- वेरग्गपसंतिदायगतवमिणं ॥ सरिसवरुहक्खएसुं-मंगलपवरं दहिगुडेसुं ||१२||
जा दुलहाइदाणा - बहुजवणा मंततंतजंतेहिं ॥ तवसा ताउ लहंते - लद्धी खिष्पं महुल्लासा ॥ १३॥
वसणं जलसुद्धमिणं - मलिणं होज्जा पुणोऽवि ण तवेणं ।। मलिणं होज्ज सरीरं - चएज्ज विगईण रसगिद्धिं ॥ १४॥ तवसा चक्किसुरतं - रिद्धिदत्तप्पवीरिउल्लासो ॥ अडवीसइलद्धीओ - तवदेवलयाइ फलमेयं ॥ १५ ॥ नियनिद्वयविलेवा-सुवण्णरंगंगुली कया तेणं ॥ समयाहरे समणेणं-सणं कुमारेण निवरिसिणा ॥ १६॥

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