Book Title: Stotra Chintamanistatha Prakrit Stotra Prakash
Author(s): Vijaypadmasuri
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

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Page 335
________________ ३१२ श्री विजय मसूरिविरचितः विक्कमजसभूमिवई-कंचणउरवासिनागदत्तस्स ॥ विण्हुसिरिं पासित्ता-उवरि तीए निवो रत्तो ॥१७॥ एयं णच्चऽण्णाहि-राणीहिं मारिया पदं साहिं ॥ दुस्सहकम्मणकम्म-किच्चा सा तं मयं णिवई ॥ १८ ॥ जाणइ णो वणपडियं-दुग्गंधसवं स ती दणं ॥ वेरग्गगओ पत्तो-दिक्खं पसमाइगुणललियं ।। १९ ॥ साहित्ता तं तइए-सग्गे पत्तो महिडिदेवत्तं ।। चइअ तओ संजाओ-रयणउरे वणियजिणधम्मो ॥२०॥ मरिऊण नागदत्तो-सीहउरे बंभणग्गिसम्मक्खो ॥ जाओ देसा तेणं-वणियस्स महादुहं दिणं ॥२१॥ जिणधम्मो सोहम्मे-इंदो वाहणकरी तहा विप्पो ॥ एरावणत्ति जाओ-तत्तो चइऊण सग्गाओ ॥२२॥ नरयाससेणराणी-सहदेवी हत्थिणाउरम्मि हरी ॥ इह तीए कुच्छीए-पुत्तत्तेणं समुप्पण्णो ॥ २३ ॥ चउदस सुमिणा दिट्ठा-राणीए पुत्तजम्मणं जायं ॥ अभिहाणं सुहदियहे-सणंकुमारत्ति संठवियं ॥ २४ ॥ स कमसो-कण्णा परिणेअसी नरवईणं ॥ तस्स जया थीरयणं-जगओ जो वज्जवेगस्स ॥२५॥

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