Book Title: Stotra Chintamanistatha Prakrit Stotra Prakash
Author(s): Vijaypadmasuri
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

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Page 320
________________ प्राकृतस्तोत्रप्रकाशः २९७ भावमणब्बइरेगो-सव्वण्णूणंति सव्वभावाण ॥ संपुण्णं विणाणं-केवलनाणं मुणेयव्वं ॥ ६० ॥ इक्कं सुद्धं साहा-रणपुण्णाणंतमत्थ पणगमिणं ॥ अव्वाघायं च तहा-केवलसदस्स छट्टत्यो ॥ ६१ ॥ छउमत्थत्तगयाणं-विगमे नाणाण केवलं होज्जा ॥ केवलमिकमियत्थो-गुरुगम्मा सव्वमुत्तत्था ॥ ६२ ॥ आवरणंसविणासे-मइसुयपमुहाइ विज्जमाणाई॥ तस्सव्वविरहकाले-कहं न ताइं विसिट्ठाइं ॥६३ ॥ घणछाइयभाणुकरा-कडदिविणिग्गया कडाईणं ॥ विरहे जहेव न तहा-इमाणि सव्वावरणविगमे ॥६४॥ अवरे जहिणुग्गमणे-संतावि गहाइया विहलसत्ता॥ मइनाणाईणि तहा-केवललद्धीइ विहलाई ॥ ६५ ॥ आवरणमेलविरहा-सुद्धत्यो केवलस्स पुण्णंति ॥ पाउब्भवए पुण्णं-आवरणिज्जप्पणासाओ ॥६६॥ केवलसरिसं नाणं-नण्णमसाहारणं तयं तत्तो ॥ केवलमणंतनाणं-अणंतदव्वाइविण्णाणा ॥ ६७ ॥ केवलमव्याघायं-कडाइवाघायसव्वविरहाओ । मइनाणाइसरूवं-एवं भणियं जहासुत्तं ॥ ६८ ॥ सहभावगयाइं दो-मइसुयनाणाइ सामिकालेहिं ॥ कारणविसयपरोक्ख-तणेहि दुण्हं समाणत्ता ॥६९॥

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