Book Title: Stotra Chintamanistatha Prakrit Stotra Prakash
Author(s): Vijaypadmasuri
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha
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प्राकृतस्तोत्रप्रकाशः
नीयकुले संजायं-थुणंति सक्काइया पहिठ्ठमणा ।। सेवंति जं णमंते-तं चारित्तप्पहावाओ॥९॥ पुणए मलिणं जीवं-चारित्तं देइ चंगसम्मज्जं ॥ रंकोऽवि जहा जाओ-तिखडओ संपई राया ॥१०॥ जस्स मणं चारित्ते-लीणं णियरइपमोयसंपुण्णं ॥ तं कुलनारिव्व सुहा-लिच्छति पसत्थलद्धीओ ॥ ११ ॥ इह सुहसिद्धिमहत्तं-पसंतिमयजीवणं परुवयारो ॥ मुत्तिपयं पाविज्जा-परत्थचारित्तसेवाए ॥ १२ ॥ लोयविहाराईमुं-जस्स फलं सुंदरं न तं दुक्ख ॥ कुसुमोदाहणाओ-मुहं दुहं बझदिट्ठीए ॥१३॥ पोल्लाससाहणाओ-सिणिद्धकम्मप्पणासणं होज्जा। गुणवंधणदुहसहणा-चडंति पुप्फाइनिवसीसे ॥१४॥ सम्मत्तं विण्णाणं-देवाइगईसु वावि संभवए ॥ सम्मचरणसंसेवा-मणुयत्ते चेव णण्णत्थ ॥ १५ ॥ अट्टगुणा चारित्ते-सावज्जारंभजोगपरिहारो ॥ नारीतणयाईणं-न दुव्वयणदुक्खपरिसहणं ॥१६॥ न नई भूवाईणं-न चिंतणा भोयणाइयत्थाणं ॥ नाणाइयवरलाहो-लोए सम्माणपूयाओ ॥१७॥ पसमसुहमहाणंदो-मुत्तिपरमसंपयावि पज्जते । एवं णच्चा भव्वा !-चारित्ताराहणं कज्ज ॥ १८॥

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