Book Title: Stotra Chintamanistatha Prakrit Stotra Prakash
Author(s): Vijaypadmasuri
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha
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प्राकृतस्तोत्रप्रकाशः
३०१
केवलमेगविहाण-एगावण्णा हवंति पंचण्हं ॥ काउस्सग्गाइविही-गुणाणुमाणेण णायव्यो ॥१००॥ नवपयसाहणसमए-सत्तमदियहे पसत्थनाणस्स ॥ आराहणा विहेया-एवं तत्तं वियारिज्जा ॥१०१॥ सिरिनाणपयज्झाणं-आगमनोआगमेहि कायव्वं ॥ उवओगबोहकलिओ-पढमो किरियस्सिओबीओ॥१०२॥ निक्खेवचउकाओ-नाणपयं सव्वया वियारिज्जा॥ नाणंति जस्स णाम-विष्णेयं नामनाणंति ॥ १०३ ॥ नाणीणं पडिमाओ-ठवणा नाणं च दव्वनाणमिणं॥ भावग्णाणनियाणं-मइसुयपमुहाइभावाओ ॥१०४॥ नागपयं समता-पयणिस्संदं सया विभावेंता ॥ होज्जा नाणसरूवा-मज्झत्थनरा विणोयाओ॥१०५॥ मणुयत्तं पुण्णेणं-नवपयसंसाहणा य पुण्णेणं ॥ ततो सत्तमदियहे-नाणपयाराहणं कुज्जा ॥१०६॥ गुणरइरंगतरंगो-अमियविहाणायराइयपमुइओ। आराहगसिरिसंघो-नियगुणतुट्ठी लहेउ सया॥१०७॥ दाणंकनिहिंदुमिए-बरिसे सोहग्गपंचमीदियहे ॥ सिरिसिद्धचक्कभत्ते-जइणउरीरायणयरम्म ॥१०८॥ सिरिसिद्धचकसंग-सत्तमनाणत्यवं विसालत्थं ।। सुग्गहियक्खाणमहो-वयारिगुरुणेमिनरीणं ॥१०९॥

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