Book Title: Stotra Chintamanistatha Prakrit Stotra Prakash
Author(s): Vijaypadmasuri
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

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Page 321
________________ श्री विजय पद्मसूरिविरचितः पच्चरखनाणलाहो - परोक्खनाणीण होज्ज गण्णस्स ॥ तावहितिगस्स पुव्वं - महसुयनाणाण पण्णवणा ॥ ७० ॥ मइवियलो सुनाणं - लहइ न ता भासिय मइण्णाणं ॥ आईए महपुत्रं सुयं मई णत्थ सुयश ॥ ७१ ॥ काला पंचगेणं-सम्मेsविय कारणाइऊहिं ॥ सत्तहि दोहं भेओ-न चलिज्जा कज्जमिक्केणं ॥ ७२ ॥ मइसुयतरमवही - सामिविवज्जयठिईष्टि लाहेणं ॥ सम्मा ता मणनाणं- अज्झक्खत्ताइसाहमा ॥ ७३ ॥ पच्चक्खत्तं भावो - छउमत्थतं च रूविविसयत्तं ॥ अवहिमणपज्जवेसुं - साहम्मं चउहिमे एहिं ॥ ७४ ॥ अपमाउत्तमभावाऽ- बसाणला हेहि तीहि हेऊहिं ॥ मणपज्जवनाणाओ - अनंतरं केवलं कहियं ॥७३५॥ सपरोवयारदक्खं- सुयं सुराहिट्ठियं पहावडूं ॥ वियरणपदाणजुग्गं - विहावविलओ सुयग्णाणा ॥ ७६ ॥ मिच्छानाणं दुहयं - सम्मण्णाणं भवण्णवतरंडं ॥ पुव्वहरारियरक्खिय - मंबा हिट्ठा पलोइत्ता ॥ ७७ ॥ लोयालोयसरूवं- नियपरगुणपरिचओ सुयण्णाणा || दीवपईवसमाणं - सुयनाणं कप्परूक्खनि ॥ ७८ ॥ तत्तण्णया सुयाओ - सुय्बहुमाणा सुदेव गुरुधम्मा || इह बहुमया विवक्खं - गुरुपण्णत्तं वियारिज्जा ॥७९॥ २९८

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