Book Title: Stotra Chintamanistatha Prakrit Stotra Prakash
Author(s): Vijaypadmasuri
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

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Page 301
________________ २७ श्री विजयपद्मसूरिविरचितः अहिममणिसग्गजोगा-करणकमियं तयं समुभवए॥ करणं जियपरिणामो, ताणि सुए तिणि वुत्ताई ॥६॥ पढमं जहप्पयट्ट, बिइयमपुव्वं तइज्जमणियट्टी॥ कमसो ताण पवित्ती, णेयं पत्तेयकजमिणं ॥ ७॥ आउरहियपगईणं, पल्लासंखंसहीणजलहीणं ॥ एगा कोडाकोडी, ठिइमाणं कज्जए पढमा ।। ८ ॥ तयणंतरं च गंठी, कम्मयघणरागदोसपरिणामो । भिंदइ तं बिइएणं, तइएणं लहइ सम्मत्तं ।। ९॥ आरंभे मिच्छत्ती, कम्मग्गंथियमयाणुसारेण ॥ उवसमियं सम्मत्तं, लहेइ जं कुणइ सो पुंजे ॥ १० ॥ सिद्धतियमयमेयं, खओवसमियं लहेइ मिच्छत्ती॥ जम्हाऽपुव्वायारो, पुंजविहाणं महत्थं तं ॥ ११ ॥ चउगइमयसंसारे-किलेसरूवे भमंति संसारी॥ अण्णाणा तिणि तओ-तद्धिययाइं पवुत्ताई ॥१२॥ पढमं वरसम्मत्त-नाणं बिइयं तइज्जसम्पत्तं ॥ तिण्हं समुइयजोगा-णिव्वुइहम्मप्पइट्ठाणं ॥ १३ ॥ सम्मत्तप्पाहण्ण-तेसुं सम्मत्तभावपरिभट्ठा ॥ निव्वाणं न लहंते-जं तब्भट्ठो निहिलभट्ठो ॥ १४ ॥ सम्मत्तहीणजीवा-न होज कइयावि सेसगुणजुग्गा ॥ दव्वचरित्तविहीणा-लहंति मुत्तिं न तबियला ॥ १५॥ .

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