Book Title: Stotra Chintamanistatha Prakrit Stotra Prakash
Author(s): Vijaypadmasuri
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

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Page 312
________________ प्राकृतस्तोत्रप्रकाशः २८९ सम्मत्तं नियवंसे-ठवेइ जो मुत्तिसम्मुहो तेणं ॥ ठविओ सईयवंसो-सयलो सम्मत्तदाणाओ ॥११६॥ सकाणुढाणाइं-करेइ तइयरविहिं पसदहइ ॥ एवंपि संकुणतो-सो चारित्ता लहइ मुत्तिं ॥११७ ॥ वररुइबंभवयाई-भवसायरतारगाइ तुंबाइं ॥ संधारतो ताई-निमज्जए त्थीनईसु कहं ? ॥११८॥ नवपयसाहणसमए-छठे दियहे सरिज सम्मत्तं ॥ सगसटिगुणझाणं-कायव्यं विचलचित्तेणं ॥११९॥ दसणपयपणिहाणं-आगमनोआगमेहि कायव्वं ॥ उवओगनाणकलिओ-पढमो किरियणिओबीओ।।१२०॥ निक्खेवचउक्काओ-दसणपयभावणा कुणिज्ज सया ॥ दंसणमिइ जस्सक्खा-नामेणं दंसणो सेऽत्थ ॥१२१॥ दसणगुणीण पडिमा-ठवणा दंसणमिइ स्सुए भणियं ॥ गुणगुणिविभेयभावा-विरूवठवणा कहं होज्जा ॥१२२॥ खाओवसियदिट्ठी-दव्वेणं दंसणं मुणेयव्वं ॥ सम्मत्तमोहणीओ-दयपोग्गलियं तयं जम्हा ॥१२३॥ अमुणियपरमत्थाणं-सच्चं जिणवुत्तमेयमिइ सद्धा ॥ दव्वेणं सम्मत्तं-अणुवओगी य अत्थण्णो ॥१२४॥ नवतत्तबोहकलिया-सद्धा जा सा य भावसम्मत्तं ॥ अहवा जं दव्वेणं-सम्मत्ता होज्ज विवरीयं ॥१२५॥

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