Book Title: Stotra Chintamanistatha Prakrit Stotra Prakash
Author(s): Vijaypadmasuri
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha
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प्राकृतस्तोत्रप्रकाशः
२९३
जं जाणिज्जइ एत्तो-अइंदियत्या अलोइओ भाणू ॥ अंतरतमतिमिरहरं-चित्तालंकारहं नाणं ॥ २० ॥ सोहइ नाणी नाणा-न तहण्णो भूरिभूसणविभूसो ॥ कुसलत्तेणागिज्ज-नाणधणं लोयमाणदयं ॥२१॥ नाणा दुक्खविणासो-मुको तेणो निवेण विणाणो॥ सम्मग्गदसगं तं-उम्मग्गनिवारगं नाणं ॥ २२ ॥ हेओवाएयत्थे-नाणी खिप्पं विबोहए नाणा | सण्णाणवज्जमेयं-तोडइ कम्मायले विसमे ॥२३॥ नाणं मणसुद्धियर-अणद्धियसुहासमाणयं नाणं ॥ कंचणकुंभसमाणा-किरिया सण्णाणसकारा ॥२४॥ किरिया सण्णाणजुया-रविकंतिनिहा तहा विगयनाणा ॥ खज्जोयपयासनिहा-जाणिज्जा नाणमाहप्पं ॥२५॥ भस्सियददरतुल्ला-किरिया नाणणिया विमलनाणा ॥ होज्जुङगमणसमणा-कहंति य ण्णाणसाराई ॥२६॥ नाणुकरिसो चरण-नाणं परिपक्कमेव जस्सत्थि ॥ तस्स चरित्तं नियमा-पसमरईएवि तह भणियं ॥२७॥ नाणस्स फलं विरई-होज्ज जया मोहवासणासंती॥ नाणफलं सच्चमिणं-लद्धं तइया वियाणिज्जा ॥२८॥ अप्पा धम्मे मूरो-नाणा मोहं पराजिणइ मूरो॥ तयणंतरम्मि समए-अप्पियसंति लहिज्ज परं ॥२९॥

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